
(ब्यूरो रिपोर्ट समाचार भारती)
बागपत के बरनावा में स्थित प्राचीन टीले को लेकर 53 साल से चल रहा विवाद अब खत्म हो गया। सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बरनावा के प्राचीन टीले पर कब्रिस्तान या दरगाह नहीं, बल्कि महाभारत काल का लाक्षागृह ही है। यह विवाद 1970 में शुरू हुआ था जब बरनावा निवासी मुकीम खान ने मेरठ की अदालत में वाद दायर किया था। उन्होंने दावा किया था कि प्राचीन टीले पर शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है। वादी पक्ष की ओर से अधिवक्ता शाहीद खान इस मामले की पैरवी कर रहे थे।
मेरठ के बाद यह वाद बागपत की अदालत में चल रहा था। प्रतिवादी पक्ष की ओर से अदालत में दावा किया गया था कि प्राचीन टीले पर दरगाह या कब्रिस्तान का सवाल ही नहीं उठता है। यह तो महाभारत काल का लाक्षागृह है, जिसकी गवाही सुरंग, प्राचीन दीवारें आदि अभी भी दे रही हैं। टीले की कुछ भूमि का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अधिग्रहण कर रखा है, शेष भूमि श्री गांधी धाम समिति की है, जिस पर श्री महानंद संस्कृत विद्यालय लाक्षागृह, बरनावा का संचालन किया जा रहा है। प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता रणवीर सिंह ताेमर वाद को लड़ रहे थे।
वर्ष 1997 से यह वाद बागपत की सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की अदालत में चल रहा था। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया है। न्यायाधीश शिवम द्विवेदी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बरनावा के प्राचीन टीले पर कब्रिस्तान है न दरगाह, बल्कि वहां तो लाक्षागृह ही है। उधर, गांधी धाम समिति के प्रबंधक और मंत्री राजपाल त्यागी ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए इसे सत्य की जीत बताया है। उधर, सुरक्षा के लिहाज से लाक्षागृह पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक बड़ी जीत है जो बरनावा के प्राचीन टीले को लाक्षागृह मानते थे। यह फैसला इतिहास के एक महत्वपूर्ण हिस्से को बचाने में मदद करेगा।