
(रिपोर्ट – अदिति मिश्रा)
मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख त्योहार हैं। यह त्योहार 14 या 15 जनवरी के दिन ही मनाया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। भारतीय पंचांग पद्धति में समस्त तिथियाँ चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। सूर्य प्रतिवर्ष 365 दिनों में एक बार अपनी परिक्रमा पूरी करता है। इस परिक्रमा के दौरान वह 12 राशियों से होकर गुजरता है। जब वह धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है, तो उस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है।
भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अधिक दूर। इस कारण भारत में रातें बड़ी और दिन छोटे तथा शीत ऋतु होती है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना आरंभ हो जाता है। इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं, ऋतु परिवर्तन होता है और धीरे धीरे वातावरण में उष्णता बढ़ने लगती है।
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का नया दिन आरंभ होता है। देवलोक या स्वर्ग पृथ्वी से इतनी दूरी पर स्थित है कि जब स्वर्ग में एक दिन या 24 घंटे का समय व्यतीत होता है तो पृथ्वी पर एक वर्ष का समय पूर्ण हो जाता है। मकर संक्रांति से छह महीने तक स्वर्ग में सुबह से संध्या (12 घंटे) का समय व्यतीत होता है और पृथ्वी के अगले छह महीने का समय स्वर्ग में रात्रि रहती है। मकर संक्रांति से खरमास समाप्त हो जाते हैं, खरमास में मांगलिक कार्य नहीं होते है। मकर संक्रांति के साथ ही विवाह, नामकरण आदि शुभ कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध आदि का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता है। घी, तेल, तिल, गुड़, कंबल के दान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थी। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग और गंगासागर में स्नान को महास्नान की उपाधि दी गई है। प्रयागराज में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर हर वर्ष एक महीने तक माघ मेला लगता है, माघ मेले को छोटा कुंभ मेला भी कहते हैं। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान तक चलता है। बंगाल के गंगासागर में हर वर्ष एक दिन के लिए विशाल मेला लगता है, इसलिए कहा जाता है “सारे तीर्थ बार बार, गंगा सागर एक बार।”
महाभारत काल में भीष्म पितामह को मकर संक्रांति के दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था तथा वह पुनः जन्म लेना नहीं चाहते थे। महाभारत युद्ध में घायल होने पर 58 दिनों तक बाणों की शैया में जाग्रत अवस्था में रहते हुए आध्यात्म और अमूल्य ज्ञान दिया और मकर संक्रांति के दिन अपने वरदान का उपयोग करते हुए शरीर का त्याग कर दिया।
मकर संक्रांति के अवसर पर मुख्य रूप से उत्तर भारत में पतंग उड़ाने की परंपरा है। नेपाल में नेपाली सरकार इस दिन सार्वजनिक अवकाश देती है। मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य की गति से निर्धारित होता है और इसका धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही महत्व है।