
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार की ओर से ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर आज जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. आज प्रदेश सरकार को इस पर अपना पक्ष रखना था. लेकन सरकार ने इसके लिए कोर्ट से दो हफ़्ते का वक्त मांगा, जिसे अदालत ने मान लिया.
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार ने पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था. सरकार के इस फैसले को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी. उस याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर सरकार को तलब किया था. जस्टिस रवि शंकर झा की अध्यक्षता वाली युगल पीठ में इस केस की सुनवाई थी. इसमें सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शशांक शेखर मौजूद थे. उन्होंने ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण की न्यायिकता प्रमाणित करने के लिए कोर्ट से 2 सप्ताह का समय देने की अपील की. अदालत ने उसे स्वीकार कर लिया.
इसके साथ ही मामले में एक हस्तक्षेप याचिका ओबीसी छात्रों की ओर से दायर की गयी. उस पर भी अगली सुनवाई में एक साथ बहस होगी. हस्तक्षेप याचिका में न्यायालय को बताया गया कि ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से तीन याचिका विचाराधीन हैं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा एम नागराजन एवं इंदिरा साहनी के प्रकरण का हवाला दिया गया जिसमें कहा गया है कि आरक्षण के मुद्दे को सुनने का क्षेत्राधिकार मात्र सुप्रीम कोर्ट को रहेगा.
8 मार्च 2019 को प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अध्यादेश जारी कर ओबीसी वर्ग को आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था. इसी अध्यादेश को चुनौती देते हुए मेडिकल प्री पीजी की छात्राओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उसके बाद अदालत ने सरकार के उस अध्यादेश पर स्थगन आदेश दिया था. मेडीकल प्री पीजी की काउॅन्सिलिंग में ओबीसी वर्ग को सिर्फ 14 प्रतिशत के हिसाब से आरक्षण देने का आदेश दिया था.