
(ब्यूरो रिपोर्ट समाचार भारती)
उत्तर प्रदेश में 350 करोड़ रुपये के जमीन घोटाले में पूर्व प्रमुख सचिव समेत चार बड़े अफसर भी फंस गए हैं। इस घोटाले में आवास विकास के उप आवास आयुक्त, सहायक अभियंता, अनुभाग अधिकारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और सहायक श्रेणी द्वितीय को प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया गया है। यह घोटाला गाजियाबाद के बिल्डर गौड़ संस इंडिया कंपनी को भू उपयोग शुल्क जमा कराए बिना ही 12.47 एकड़ जमीन देने से हुआ है। इस जमीन की कीमत अनुमानित 350 करोड़ रुपये आंकी जा रही है। इस घोटाले की जांच एसआईटी के द्वारा की गई थी। एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर आवास आयुक्त ने शासन के अपर मुख्य सचिव (आवास) को पत्र लिखकर इस मामले की विजिलेंस जांच कराने की मांग की है। विजिलेंस जांच हुई तो पूर्व प्रमुख सचिव समेत चार बड़े अफसर भी फंसेंगे। इनमें पूर्व प्रमुख सचिव (आवास), आवास विकास के तीन पूर्व आयुक्त शामिल हैं।
गौरतलब है कि आवास विकास ने एसटीपी बनाने के लिए किसानों को मुआवजा देकर वर्ष 1989 में इस जमीन का कब्जा लिया था। वर्ष 2004 में इस जमीन को लेकर विवाद शुरू हुआ तो जून 2014 में बिल्डर की दूसरी जमीन के एवज में एसटीपी के प्रस्तावित जमीन उसे दे दी गई। बिल्डर को इस पर आवासीय प्रोजेक्ट लाने से पहले उसका भू उपयोग बदला जाना था, जिसके लिए शुल्क नहीं जाना था। लेकिन, अफसरों एवं इंजीनियरों ने भू उपयोग शुल्क जमा कराए बिना ही जमीन दे दी, जिससे आवास विकास को को 350 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस घोटाले की जांच के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा और जमीनों की खरीद-फरोख्त के लिए अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। सरकार को इस मामले में कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और दोषी अधिकारियों को सजा दिलानी चाहिए।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसआईटी के द्वारा की गई जांच में तत्कालीन उप आवास आयुक्त एसवी सिंह, सहायक अभियंता आरएल गुप्ता, अनुभाग अधिकारी साधु शरण तिवारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बैजनाथ प्रसाद और सहायक श्रेणी द्वितीय आरसी कश्यप को प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया गया है। मगर, जांच पूरी होने से पहले यह सभी दोषी रिटायर हो चुके हैं।आवास विकास ने एसटीपी बनाने के लिए किसानों को मुआवजा देकर वर्ष 1989 में इस जमीन का कब्जा लिया था। वर्ष 2004 में इस जमीन को लेकर विवाद शुरू हुआ तो जून 2014 में बिल्डर की दूसरी जमीन के एवज में एसटीपी के प्रस्तावित जमीन उसे दे दी गई। बिल्डर को इस पर आवासीय प्रोजेक्ट लाने से पहले उसका भू उपयोग बदला जाना था, जिसके लिए शुल्क नहीं जाना था। लेकिन, अफसरों एवं इंजीनियरों ने भू उपयोग शुल्क जमा कराए बिना ही जमीन दे दी, जिससे आवास विकास को को 350 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।सरकार को इस मामले में सख्त कार्रवाई करके यह संदेश देना चाहिए कि भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों को किसी भी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी।