राफेल विवादः ‘दस्तावेजों की चोरी’ के बाद उठ रहे हैं ये सवाल, जानें क्या है ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट?

By | March 7, 2019

नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जानकारी दी कि राफेल फाइटर प्लेन के सौदे से जुड़े दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी हो गए हैं. सरकार ने कहा कि अखबारों ने लीक्ड जानकारी प्रकाशित की है जोकि ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय बेंच ने राफेल डील की जांच से जुड़ी पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई की. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि सरकारी दस्तावेजों के बाहर आने की वजह से 2जी और कोल गेट मामलों की सुनवाई हुई थी.ऐसे में न्यूज 18 बता रहा है कि 1923 का ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट इस मामले में कैसे काम करेगा. वहीं इस खबर में हम व्हिसल ब्लोअर एक्ट और आरटीआई एक्ट पर भी बात करेंगे.

ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1923 भारत का जासूसी-विरोधी एक्ट है जो ब्रिटिश राज के जमाने का है. इसके तहत भारत के खिलाफ दुश्मन देश की मदद करना अपराध है. इसके तहत कोई व्यक्ति सरकार द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्र में न जा सकता है, न ही उसकी जांच कर सकता है और न उसके आसपास से गुजर सकता है.इस एक्ट के तहत यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है. यानी यदि यह पाया जाता है कि वह व्यक्ति भारत में या भारत के बाहर रह रहे विदेशी एजेंट के संपर्क में है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है.

अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा? 

सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जिन लोगों ने राफेल डील से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक किया वे ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट और कोर्ट की अवमानना के आरोपी हैं. उन्होंने आगे कहा कि राफेल डील पर अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट से कोर्ट की सुनवाई पर भी प्रभाव पड़ सकता है जोकि कोर्ट की अवमानना के अंतर्गत आता है.

वेणुगोपाल ने आगे कहा कि सरकार इस एक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ केस दर्ज करने पर विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि इस मामले में सरकार ने जांच शुरू कर दी है हालांकि इस मामले में कोई एफआईआर अभी तक दर्ज नहीं हुई है.सरकार के मुताबिक, द हिंदू की रिपोर्ट कैसे ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट का उल्लंघन करती है?
एक्ट के सेक्शन 3 के मुताबिक (1) यदि कोई व्यक्ति देश की सुरक्षा या हित के खिलाफ किसी भी कार्य के लिए सीक्रेट सरकारी जानकारी इकट्ठी करता है, रिकॉर्ड करता है या उसे प्रकाशित करता है तो उसे 14 साल तक की सजा हो सकती है और इससे संबंधित एक अन्य केस में तीन साल तक की सजा हो सकती है.सरकार का कहना है कि ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट का आधार बनने वाले दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चुरा लिए गए और बाद में उन्हें पब्लिश कर दिया गया. यह इस एक्ट के तहत अपराध है.

हालांकि जब सीजेआई ने सवाल किया कि जब अखबार ने पहली बार खबर प्रकाशित की उसके बाद सरकार ने राफेल की कीमत को लेकर क्या किया. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वह इस पर सरकार का स्टेटस पता करेंगे.हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ये दस्तावेज उन्हें व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मिले. अब इसका क्या असर होगा?अटॉर्नी जनरल की दलील को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए प्रशांत भूषण ने बताया कि ये दस्तावेज कैसे हासिल किए गए. उन्होंने कहा कि कैसे व्हिसलब्लोअर्स ने उन्हें पूर्व सीबीआई चीफ रंजीत सिन्हा की एंट्री रजिस्टर और 2जी मामले के अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराए. ये वही दस्तावेज थे जिनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश दिए थे.कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 14 मार्च तक के लिए टाल दी है. सुनवाई की अगली तारीख मिलने से पहले याचिकाकर्ता अरुण शौरी ने कोर्ट को बताया कि कोलगेट और 2जी घोटाला मामलों में भी उन्होंने व्हिसलब्लोअर से दस्तावेज लिए थे.

यदि कोई व्हिसलब्लोअर भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग या किसी लोकसेवक के किसी आपराधिक कृत्य का खुलासा जनहित में करता है तो व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सरकार उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगी.सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएस राधाकृष्णन और एके सीकरी की बेंच ने अगस्त 2013 में फैसला दिया था कि भ्रष्टाचार निरोध एक्ट, 1988 के तहत व्हिसलब्लोअर की पहचान आरोपी के सामने किसी भी कीमत पर जाहिर नहीं की जाएगी.संभवतः इसी वजह से एन राम ने भी कहा कि राफेल पर रिपोर्ट अखबार ने जनहित में प्रकाशित की थी.तो फिर प्रशांत भूषण ने यह क्यों कहा कि राइट टू इंफॉर्मेशन का महत्व ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट से अधिक है?प्रशांत भूषण ने अटॉर्नी जनरल की दलील को खारिज करते हुए कहा कि राइट टू इंफॉर्मेशन एक्ट का महत्व ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट से अधिक है और इसलिए किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ.भूषण ने आरटीआई एक्ट के सेक्शन 8(2) के आधार पर कहा कि सब सेक्शन एक के तहत ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट को दरकिनार करते हुए यदि पब्लिक इंटरेस्ट (जनहित) प्रोटेक्टेड इंटरेस्ट से महत्वपूर्ण है तो पब्लिक अथॉरिटी जनता को जानकारी दे सकती है.2005 के आरटीआई एक्ट में इस बात का साफ जिक्र है कि ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के साथ क्लैश होने की स्थिति में जनहित को अधिक महत्व दिया जाएगा.क्या सरकार इस बात का खंडन कर सकती है कि आरटीआई का महत्व ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट से अधिक है?ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के क्लॉज 6 के मुताबिक, किसी भी सरकारी दफ्तर से प्राप्त जानकारी आधिकारिक जानकारी मानी जाएगी. ऐसे में इसका इस्तेमाल आरटीआई रिक्वेस्ट को ओवरराइड करने के लिए किया जा सकता है. इस क्लॉज की कई मौकों पर आलोचना हुई है लेकिन यह अभी भी कानून का हिस्सा है और सरकार इसका इस्तेमाल याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कर सकती है.सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉक्टर अशोक धमिजा कहते हैं, ‘अवैध तरीके से हासिल किए गए दस्तावेज यदि सही दस्तावेज हैं तो उनपर भरोसा किया जा सकता है. हालांकि इस दस्तावेज को गैरकानूनी तरीके से हासिल करने वाले के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है.’

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