
भोपाल। देश का दिल यानि मध्यप्रदेश की राजधानी के पॉश इलाकों में तेंदुओं की आमद से दिनों दिन दहशत फैलती जा रही है। इसका एक प्रमुख कारण जंगलों में प्रे-बेस (शिकार आधार) कम होना और दूसरा टाइगर्स की संख्या में वृद्धि होना माना जा रहा है। इसके साथ ही शहर में जगह-जगह डाले गए कचरे पर जमा होने वाले कुत्ते, पिग्स, चूहे आदि छोटे जानवर भी तेंदुओं को शहर में आकर्षित करने का एक कारण माने जा रहे हैं।
भोपाल शहर से सटे समरधा रेंज के कलियासोत-केरवा डैम के जंगल और रातापानी टाइगर सेंक्चुरी का कुल क्षेत्रफल एक हजार वर्ग किलोमीटर माना जाता है। रातापानी सेंक्चुरी का ही एरिया 823.84 वर्ग किलोमीटर है। इस पूरे इलाके में 35-40 टाइगर घूम रहे हैं।
चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट डॉ. एसपी तिवारी भी मानते हैं कि रातापानी फॉरेस्ट में शाकाहारी जानवर कम होने से टाइगर्स भोपाल शहर से सटे जंगल की ओर अधिक सक्रिय रहते हैं। यहां प्रे-बेस और पानी पर्याप्त है। जब टाइगर शहर के आसपास जंगल में मूवमेंट बनाए हुए हैं तो तेंदुए शहर में घुसने लगे हैं। शहर के आसपास 20 से अधिक तेंदुओं का भी मूवमेंट बना हुआ है।
राजधानी के एयरपोर्ट-गांधी नगर, आइआइएफएम-नेहरू नगर, स्वर्ण जयंती पार्क-कोलार रोड और शाहपुरा की पहाडिय़ों, त्रिलंगा की आकाशगंगा कॉलोनी में तेंदुए का मूवमेंट हो चुका है।
रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज में भी तेंदुआ दो लोगों पर अटैक कर चुका है। तेंदुओं को शहर के आसपास आने से रोकने के लिए जंगल में प्रे-बेस बढ़ाना पड़ेगा, नहीं तो ह्यूमन-वाइल्डलाइफ कॉन्फ्लिक्ट की आशंका प्रबल हो जाएगी।
रिटायर्ड फॉरेस्ट अफसर डॉ. सुदेश बाघमारे का कहना है कि टाइगर की टेरिटरी का एरिया प्रे-बेस पर निर्भर करता है। शाकाहारी जीवों की अधिकता होने पर एक वयस्क टाइगर की टेरिटरी 9 से 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में हो सकती है, लेकिन प्रे-बेस (शाकाहारी जीवों की उपलब्धता) कम होने पर एक टाइगर की टेरिटरी 100 वर्ग किलोमीटर तक हो सकती है। कुत्ता, बछड़ा, वाइल्ड बोर, बकरी, हिरण, बिल्ली, चूहा जैसे छोटे जानवरों को भी तेंदुआ प्रे-बेस बना लेता है।
यहां भी बिगड़ सकते हालात
वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट राशिद नूर खान का कहना है कि शहर से सटे जंगल में अवैध दखल बढ़ा है। गलत तरीके से होटल, रिसोर्ट संचालित हो रहे हैं। डीजे और तेज शोरगुल वाली धूमधड़ाका पार्टियां हो रही हैं। इनके ध्वनि प्रदूषण से विचलित होकर जंगली जानवर शहर की ओर रुख कर रहे हैं। मुुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क में भी ऐसा हुआ था। वहां आम घटना थी कि तेंदुआ फ्लैट्स में घुसने लगे थे। भोपाल में भी ऐसा हो सकता।
एक्सपर्ट व्यू
मुंबई बेस्ड वाइल्डलाइफ कंजर्वेशनिस्ट विद्या वेंकटेश का कहना है कि तेंदुओं को सबसे पहले ट्रैप न करें। यदि केवल तेंदुए का मूवमेंट दिखाई दे रहा हैा तो सिर्फ देखने से ही इसे थ्रेट मानना गलत है। अंधेरा हो तो वहां प्रॉपर लाइटिंग करें। इससे तेंदुआ आने से दिखाई देगा। अचानक आमना-सामना न होने से तेंदुआ आक्रामक हो सकता है। घर के आसपास कचरा हो तो इसे हटा दें। कचरे के आसपास कुत्ते, पिग्स, आदि जानवर तेंदुए को आकर्षित करते हैं, इसलिए सफाई रखें। आवारा कुत्तों को बाहर खुला न छोड़ें। बच्चों का खेलना और टहलना सूर्यास्त से सूर्योदय तक नहीं करें। उजाले में ही निकलें। तेंदुए को जब भोजन नहीं मिलेगा तो वह एरिया छोड़कर चला जाएगा।