वायुसेना का सघन अभियान, पर क्यों नहीं मिल रहा भारतीय विमान?

By | June 7, 2019

नई दिल्ली। भारतीय वायु सेना के एएन-32 विमान को लापता हुआ चार दिनों से ज़्यादा बीत चुके हैं. इस मालवाहक विमान ने सोमवार दोपहर 12.27 पर असम के जोरहाट से उड़ान भरी थी और 1 बजे उसका संपर्क टूट गया था. उसमें कुल 13 कर्मी सवार थे.

इसरो की मदद से जोरहाट और अरुणाचल प्रदेश के मेचुका के बीच विमान को तलाश रही है. यह तलाश उम्मीद और आक्रोश के बीच झूल रही है.

पहले उम्मीद की बात करते हैं

ये उम्मीद ही है जिसके दम पर अरुणाचल प्रदेश के आसमान में सुखोई 30 एमकेआई, एमआई17, चीता और एडवांस्ड लाइट हैलिकॉप्टरों से लेकर सी130जे जैसे लड़ाकू विमानों और एएन32 का एक बड़ा समूह तलाशी अभियान में लगा हुआ है.

इसके अलावा भारतीय नेवी की सबमरीन हंटिंग पोसाइडन 8आई और यहां तक कि भारतीय सेना के ड्रोन (अनमैन्ड एरियल व्हीकल-यूवीए) और कार्टोसैट से लेकर रीसैट जैसी सैटेलाइटों को भी इस काम में लगाया गया है.

ये विमान भारतीय सेना की आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस उड्डयन क्षमता की रीढ़ हैं

अभी तक की खोज में विमानों की 100 घंटे की उड़ान पूरी हो चुकी है लेकिन लापता हुए परिवहन विमान का कोई सुराग नहीं मिला है. बहुत लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही है. लेकिन भीतरी लोगों को इसमें कोई ताज्जुब नज़र नहीं आ रहा.

एएन32 वायुसेना परिवहन की रीढ़

एएन32 को तीन हज़ार घंटे तक उड़ाने का अनुभव रखने वाले एक रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “इस पूरे क्षेत्र में आसमान से केवल नदियां दिखती हैं. बाकी इलाका जंगलों से ढंका है. एएन32 बहुत बड़ा हो सकता है लेकिन बिना किसी संकेत के इसके बारे में बस अनुमान लगाया जा सकता है.” एएन32 को खोजने में लगे सी-130जे, नेवी के पी8आई, सुखोई जैसे विमान दिन रात बहुत सारा डेटा इकट्ठा कर रहे हैं.

भारतीय वायु सेना का कहना है कि क्रैश की संभावित जगह से इन्फ्रारेड और लोकेटर ट्रांसमीटर के संकेतों को विशेषज्ञ पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. तस्वीरों और टेक्निकल सिग्नल के आधार पर कुछ खास बिंदुओं पर कम ऊंचाई पर हैलिकॉप्टर ले जाए जा रहे हैं.

लेकिन ऊपर से महज़ इतना हो पा रहा है कि कि वो बस ज़मीनी तलाशी टीम के साथ तालमेल बना पा रहे हैं. एक पूर्व अधिकारी ने बताया, “सबसे अंत में विमान जिस जगह पर था, वहीं से हमारी खोज शुरू होती है उसके बाद इसका दायरा बढ़ता है.” भारतीय वायु सेना के लिए एएन32 केवल एक विमान भर नहीं है. ये एक ऐसा विमान है जो वायु सेना के लिए ख़ास तौर पर बनाया गया था.

वायु सेना के वरिष्ठ से लेकर जूनियर अफ़सर तक इस लापता विमान को बहुत ही शक्तिशाली, वायुसेना परिवहन की रीढ़ और ऐसा मजबूत विमान बताते हैं जो छोटे और अस्थायी रनवे पर भी उतर सकता है. रख-रखाव के नज़रिए से भी देखा जाए तो एएन32 की बहुत मांग है.

एक रिटायर्ड ऑफ़सर बताते हैं, ”हमारे पास करीब 100 एएन32 विमान हैं जिन्हें हमने 1984 में सोवियत संघ से लिया था. हां कुछ एक दुर्घटनाएं हुई हैं लेकिन जब इन दुर्घटनाओं की तुलना विमान के व्यापक प्रयोग से की जाती है तो मामला सकारात्मक नज़र आता है.” हालांकि परेशानी के कुछ संकेत पहले से मिल रहे थे.

22 जुलाई 2016 को भी एक अन्य एएन32 विमान लापता हो गया था, जिसमें 29 लोग सवार थे.

उस समय वो पोर्ट ब्लेयर और चेन्नई के पास तम्बराम के बीच उड़ान पर था. अभी तक उसका कोई पता नहीं चल पाया है.

उस समय इस विमान में पानी के अंदर काम करने वाला लोकेटर या ऑटोमैटिक डिपेंडेंट सर्विलांस ब्रॉडकास्ट नहीं था जिससे संभावित क्रैश की जगह या सैटेलाइट नेविगेशन से अंतिम जगह का पता लग सके.

वायु सेना का कहना है कि वर्तमान के एएन32 में पुराना इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर (ईएलटी) मौजूद है जो दुर्घटना या इमरजेंसी के समय विमान की स्थिति बता सकता है.

लेकिन क्या इससे कोई मदद मिली?

एक अफ़सर का कहना है, “अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है. स्वाभाविक है कि अत्याधुनिक और अधिक प्रभावी ईएलटी इस मामले में मदद कर सकता था.”

अभी तक 96 घंटे गुजर चुके हुए हैं, अब उसकी बैटरी पर भी संदेह होने लगा है जिससे ईएलटी को ऊर्जा मिलती है.

भारतीय वायु सेना को इस बात का अंदाज़ा पहले से था. इसीलिए 2002-2003 में, इन बातों पर एएन32 बेड़े के भविष्य पर विचार विमर्श किया था.

एक रिटायर्ड वायुसेना प्रमुख ने कहा, “एन32 में इलाके और मौसम को सेंस करने वाला रडार सिस्टम नहीं है जो मिसाल के तौर पर सी130जे में है. मुझे लगता है कि अगर बेहतर मौसम रडार होता तो एन32 अच्छा है वरना इसे मुश्किलें आ सकती हैं.”

वायुसेना इस मुश्किल के बारे में जानती थी.

इसकी ख़रीद समझौते की जानकारी रखने वाले एक अफ़सर ने बताया, “एक दशक तक इस बात पर चर्चा होती रही कि इस विमान को बदला जाए या अपग्रेड किया जाए. उसके बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इसे अपग्रेड किया जाए. यूक्रेन की कंपनी एंटोनोव, जिसने इसे वायुसेना के लिए बनाया था, अपग्रेड करने के प्रस्ताव की उसकी शर्तें भी अच्छी थीं.”

वायुसेना चाहती थी कि उम्र के लिहाज से विमान के विंग मज़बूत किए जाएं, इनमें आधुनिक उपकरण लगाए जाएं ताकि इसकी उम्र 25 से 40 साल बढ़ाई जा सके.

लेकिन 2014 की शुरुआत में एक अप्रत्याशित विवाद आ खड़ा हुआ. रूस और यूक्रेन आपस में भिड़ गए. इस लड़ाई में कई चीज़ें प्रभावित हुईं. वायुसेना का एन32 अपग्रेड होना उनमें से एक था.

एक पूर्व वायुसेना अधिकारी ने कहा, “योजना के मुताबिक़ कुछ एन32 यूक्रेन में अपग्रेड हुए, हम एचएएल कानपुर में किट्स के आने का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन उसमें देरी हुई. हमने हर जगह सपोर्ट पाने की कोशिश की लेकिन योजना के हिसाब से अपग्रेड नहीं हो सका.”

वायुसेना का कहना है कि एन32 के अपग्रेड की उम्मीद अभी ख़त्म नहीं हुई है, हालांकि इसमें देरी हुई है.

अब आक्रोश की बात करते हैं. एन32 जैसे पुराने विमान से पहले इससे भी पुराने विमान हॉकर सिडले (एचएस) एवरो 748 को लेकर वायु सेना में सवाल उठते रहे हैं.

पहली बार जून 1960 में एचएस एवरो को उड़ाया गया और अफ़सर कहते हैं कि दिनों दिन इस विमान को उड़ाना ख़तरनाक होता जा रहा है.

विकल्प क्या हैं?

एक सूत्र ने बताया, “रक्षा मंत्रालय में एचएस एवरो को बदलने के प्रस्ताव की फ़ाइल यूपीए-2 के वक्त से ही धूल खा रही है. इसके मुक़ाबले एन32 तो फिर भी बेहतर है.”

भारत में सरकारी ख़रीद की बदहाली की हक़ीकत के मद्देनज़र वायुसेना को पता है कि चाहे पुराना हो या आधुनिक, जो भी उपलब्ध है उसी से काम चलाना पड़ेगा.

अफ़सर कहते हैं कि अपग्रेड किए गए एन32 भी लगभग एक दशक तक उड़ाए जा सकते हैं. वो कहते हैं, “बेशक़ एन32 को उड़ाने के ख़तरे हैं लेकिन हमारे पास और क्या विकल्प हैं?”

एक पूर्व वायु सेना प्रमुख नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर कहते हैं, “सिस्टम में जवाबदेही ना के बराबर है. बालाकोट में वायुसेना की कार्रवाई का श्रेय लेना अच्छा है लेकिन चाहे यूपीए हो या एनडीए हो, जब हमें ज़रूरत होती है तो सरकार क्यों नहीं सुनती है?”

Category: Uncategorized

Leave a Reply