
मध्यप्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. मध्य प्रदेश के महानगरों को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. ऐसे में कांग्रेस के पास सीएम कमलनाथ एकलौता ऐसा चेहरा हैं, जिनके दम पर वह बीजेेपी के किले को भेदना चाहती है. विधानसभा चुनावों के नतीजे और कम समय में सरकार के निर्णायक फैसले को भी कांग्रेस इस चुनाव में भुनाने की कोशिश कर रही है.
प्रदेश के चार महानगरों भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में जीत का मिथक तोड़ने के लिए पार्टी हाईकमान ने सीएम कमलनाथ पर भरोसा जताया है. कहा जा रहा है कि पार्टी कमलनाथ का चेहरा आगे कर प्रत्याशियों को पार्टी मैदान में उतारेगी. कांग्रेस को लगता है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे और पिछले दो महीनों में कमलनाथ सरकार के निर्णयों का लाभ लोकसभा चुनावों में मिलेगा.
साल 1989 से भोपाल और इंदौर लोकसभा पर बीजेपी का कब्जा है. जबलपुर लोकसभा पर कांग्रेस को 1996 से और ग्वालियर में 2009 से जीत नसीब नहीं हुई है. 10 से लेकर 30 सालों से महानगरों पर बीजेपी का कब्जा बरकरार है. बीजेपी के गढ़ बन चुके भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर संसदीय क्षेत्रों को इस बार किसी भी तरह से कांग्रेस भेदना चाह रही है.
कांग्रेस का दावा है कि चीजें बदल रही है, क्योंकि जनता कमलनाथ सरकार के पिछले दो माह में लिए गए निर्णयों की तुलना शिवराज की घोषणाओं से करने लगी है. युवाओं, किसानों और महिलाओं के लिए गए निर्णय से इस बार नतीजों पर फर्क पड़ेगा.
महानगरों में कांग्रेस के पास जिताऊ उम्मीदवारों का टोटा है. यही वजह है कि इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और भोपाल लोकसभा सीट पर दिग्गज नेताओं को उतारने का कांग्रेस ने मन बनाया है. भोपाल से दिग्विजय सिंह के नाम की चर्चा है, तो दूसरी सीटों पर भी बड़े कद के नेता की तलाश तेज हो गई है.
-इंदौर में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को बीजेपी फिर से मैदान में उतारने जा रही है. यहां कांग्रेस के पास ऐसा कोई नाम नहीं है, जो ताई को टक्कर दे सके.
-इंदौर की ही तरह भोपाल संसदीय सीट को भी बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जा रहा है. यहां पर भी कांग्रेस के पास जिताऊ उम्मीदवार का टोटा है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने की चर्चा है.
-जबलपुर और ग्वालियर संसदीय सीट पर भी कांग्रेस के पास जिताऊ प्रत्याशी का टोटा है.