“सुशील सोच”

By | May 4, 2022

(समाचार भारती संपादकीय विशेष)

सुशील कुमार प्रजापति- 

 

सृष्टि की वेदना

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शून्य से आरंभ होकर, शून्य में विलीन होने के सफर में,
ईश्वर जो समस्त सृष्टि के रचयिता हैं,
उनमें से एक अनमोल, नायाब व श्रेष्ठ रचना…
‘ मानव ‘ ने अपना स्वामित्व व प्रभुत्व स्थापित करने हेतु…
विकास की अंधाधुंध दौड़ में सृष्टि की वेदना की उपेक्षा कर…
अपने ही चक्रव्यूह में उलझ कर पल प्रतिपल ;

वो प्रकृति जो सृष्टि का नवश्रृंगार कर
जीवन संगीत सुनाती है…
वो प्रकृति जिसपर समस्त संसार आश्रित है..
वो प्रकृति जिसने समस्त जीव जंतुओं व निर्जिवों का,
संतुलित वातावरण व संपदा का निर्माण किया है..

उस प्रकृति का अस्तित्व मानव अपने..
मोह, लाभ, अहंकार, क्रोध, मात्सर्य व स्वार्थ के वशीभूत होकर….
करुणा, विवेक, दया व प्रेम का त्याग कर,
समस्त सृष्टि के विध्वंस पर अग्रसर है..

अपनी क्रिया – प्रतिक्रिया से भूल गया है कि…
वो भी इस सृष्टि का एक हिस्सा है अथवा,
जीव, जल, वायु व संपदा के दुरुपयोग से पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है…
इस बात से अंभिज्ञ कि उसका भी सर्वनाश हो सकता है…

मानव अब भी सचेत न हुआ तथा सृष्टि के निर्माण में हस्तक्षेप व छेड़छाड़ ना रोका…
अथवा प्रकृति व उस पर आश्रित जीव जंतुओं व निर्जिवों के संरक्षण व प्राकृतिक समन्वय की स्थापना की जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया तो…
सृष्टि के साथ साथ मानव जीवन जो शून्य से आरंभ हुआ था..
वो कदाचित् शून्य में विलुप्त हो जाएगा…

 

(कलमकार प्रसिद्ध लेखक हैं और पेशे से सिविल इंजीनियर)

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