ब्यूरो चीफ़ आरिफ़ मोहम्मद
कानपुर देहात, दुर्लभ प्रजाति के काले व चित्तीदार हिरणों का अस्तित्व संकट में है। रसूलाबाद तहसील क्षेत्र के असालतगंज के जंगल में मौजूद दुर्लभ हिरणों के कुनबे को बचाने के लिए सारे प्रयास कागजों तक सीमित हैं। 173 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले जंगल में इन हिरणों को न तो शिकारियों से बचाने के सुरक्षा उपाय किए गए हैं और न चारे का इंतजाम। इसे पर्यटक स्थल बनाने का प्रस्ताव भी शासन की हरी झंडी का इंतजार रहा है।
असालतगंज का यह जंगल बिल्हौर- रसूलाबाद मार्ग से सटा है। सड़क के समानांतर 6 किमी लंबाई में फैले 173 हेक्टेयर के वन क्षेत्र में 80 हेक्टेयर पर विलायती बबूल खड़ा है। इस जंगल में दुर्लभ काले व चित्तीदार हिरणों के कुनबे का डेरा है जिसे नर्म घास पसंद है। विलायती बबूल वाले इस जंगल में दुर्लभ प्रजाति के हिरणों की पसंदीदा नर्म घास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है।
गर्मी में सीमित क्षेत्र में उपलब्ध घास भी लगभग नष्ट हो जाती है। इस पर हिरण जंगल से लगे खेतों की फसलों को अपना निवाला बनते हैं। इन दुर्लभ हिरणों की प्रजाति बचाने के लिए जंगल में चारे की व्यवस्था जरूरी है लेकिन वन विभाग ने कभी यह प्रयास नहीं किए।
*सुरक्षा की अनदेखी*
रामगंगा नहर व जंगल के आसपास तालाब सूखे पड़े हैं। वन विभाग की ओर से जंगल में तालाब खुदवाकर पानी भराने के लिए पिछले साल प्रस्ताव किया गया था, प्यास बुझाने के लिए जंगल से निकल कर इससे इटैली आने वाले हिरन, कुत्तों के हमले का शिकार होते हैं। शिकारी भी हिरनों के जंगल से बाहर निकलने का इंतजार करते हैं, वन विभाग की ओर से सुरक्षा को कभी टीमें गश्त नहीं करती।
*175 हिरण होने का अनुमान*
असालतगंज के जंगल में करीब पौने दो सौ अधिक हिरण होने का अनुमान वन विभाग की ओर से है। कटीले बबूल की वजह से जंगल के अंदर जाकर हिरण कुनबे में वयस्क व अवयस्क की जानकारी कराना संभव नहीं है। जंगल के बाहर निकल कर विचरण करने वाले हिरण समूहों पर बराबर नजर रखकर ही इनकी संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है।
*मौसम के अनुरूप रंग बदलते*
बरसात के मौसम में इन हिरणों के शरीर का ऊपरी हिस्सा काले रंग का नजर आता है, जबकि निचले हिस्से में सफेद रंग पर काले रंग के धब्बे दिखते हैं। सर्दियों के मौसम में काले हिरण अपना रंग खोने लगते हैं और अप्रैल आते-आते ये भूरे रंग के हो जाते हैं।
