भोपाल। इसे राजनीति कह लीजिए या समय का फेर, केंद्र की कांग्रेस सरकार का विरोध करने पर जेल जाने वाले मीसाबंदियों को मध्य प्रदेश के कमलनाथ सरकार पेंशन देगी। इनके भौतिक सत्यापन के बाद मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार भोपाल जिले के 13 मीसाबंदियों को पेंशन देगी।
हालांकि, भौतिक सत्यापन में सात महीने का वक्त लग गया। गौरतलब है कि मप्र में कांग्रेस ने सत्ता संभालने के बाद ही मीसाबंदियों के भौतिक सत्यापन के निर्देश जारी किए थे।
सामान्य प्रशासन विभाग ने इसी साल 15 जनवरी को सभी कलेक्टरों को आदेश जारी किए थे कि वह मीसाबंदी (लोकतंत्र सेनानी) का भौतिक सत्यापन कर इसकी रिपोर्ट 15 दिन में शासन को भेजें। भौतिक सत्यापन होने तक उन्हें सरकार की ओर से दी जाने वाली पेंशन रोक दी गई।
भोपाल जिले के गोविंदपुरा, बैरागढ़, एमपी नगर, शहर व हुजूर तहसील के अंतर्गत रहने वाले मीसाबंदियों का भौतिक सत्यापन करीब सात महीने बाद अब पूरा हुआ है। सत्यापित मीसाबंदियों की सूची राज्य सरकार से हरी झंडी पाकर वापस भी आ गई है। इनमें से 13 मीसाबंदियों को पेंशन जारी करने का प्रस्ताव बनाकर कलेक्टर ने जिला कोषालय को भेज दिया है। रोक के पहले जिले के करीब 123 मीसाबंदियों को पेंशन जारी हो रही थी।
नई सरकार ने लगा दी थी रोक
मप्र में कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभालते ही मीसाबंदियों की पेंशन पर रोक लगा दी गई थी। इसके पीछे सरकार का तर्क था कि पेंशन प्राप्त करने वालों की सूची में ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो मीसाबंदी थे ही नहीं। प्रारंभिक जांच में कई जिलों में ऐसे प्रकरण सामने भी आए जिनमें दस्तावेज झूठे पाए गए या फिर पेंशन पाने वाले भौतिक रूप से मिले ही नहीं।
गौरतलब है कि 43 साल पहले केंद्र की कांग्रेस सरकार में घोषित आपातकाल में मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्युरिटी एक्ट) के तहत जो लोग राजनीतिक कारणों से जेल में निरुद्ध (बंद) रहे, उन्हें लोकतंत्र सेनानी या मीसाबंदी कहा जाने लगा। मप्र में भाजपा की सरकार रहने तक 1800 से 2000 मीसाबंदियों को 25 हजार रुपये बतौर सम्मान निधि (पेंशन) के रूप में दिए जा रहे थे।
