(समाचार भारती संपादकीय विशेष)
सुशील कुमार प्रजापति-
मातृ दिवस
आज का दिन माँ के नाम
पर कश्मकश में हूँ क्या लिखूँ …
तीन पहर गुज़र गए ,
शब्दों में उलझ गए , सोचते सोचते ,
कुछ लिखा , कुछ मिटा ,
जो जननी है , जगत जिस पे निर्भर है ,
जिससे चलता है ये संसार ,
कहाँ से वें शब्दकोष लाऊँ ,
जो माँ के महानता को परिभाषित कर सके ,
जो माँ के व्यक्तित्व पर पूर्णविराम लगाए , सोचता हूँ और एहसास होते जाता है
कि जो खुद माँ नहीं , वो माँ की व्याख्या क्या क्या करेगा,
कि अभी स्वयं अपनी ही पूरी क्षमता तक नहीं पहुंचा है,
अनुभवहीन है ,
वह माँ शब्द की व्याख्या क्या करेगा …
माँ जो शब्दों से परे हो , माँ जिसका हर रूप सुंदर है ,
जिसके बिना जग स्व्यं चल नहीं ..
वो माँ महान है , माँ तो पर्व है
जिसे रोज़ मनाना चाहिए…
(कलमकार प्रसिद्ध लेखक हैं और पेशे से सिविल इंजीनियर)
