Madhya Pradesh : मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, यह है मामला

By | August 18, 2020

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस से बगावत करके भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए 22 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका पर विचार न किए जाने के मामले में मध्य प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है। इसके लिए 21 सितंबर तक का समय दिया गया है।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम की न्यायपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामला जबलपुर से कांग्रेस विधायक विनय सक्सेना की याचिका से संबंधित है।

उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, विवेक कृष्ण तन्खा व वैभव जोशी ने पक्ष रखा। दलील दी गई कि मार्च 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों को भाजपा की मिलीभगत से बेंगलुरु ले जाकर रखा गया। 10 मार्च को इन विधायकों के त्यागपत्र भी विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश किए गए।

13 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष कांग्रेस की ओर से इन विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका दायर की गई। बाद में विधायकों के त्यागपत्र तो मंजूर कर लिए गए , लेकिन इन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए दायर याचिका पर विचार नहीं किया गया।

जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन माह की समय-सीमा तय की है। दोबारा विधायक निर्वाचित हुए बिना नहीं बनाए जा सकते मंत्री वरिष्ठ अधिवक्ता तन्खा ने दलील दी कि संविधान के तहत जो विधायक इस तरह एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं और साथ में त्यागपत्र भी दे देते हैं, वे अपने इस आचरण के चलते उस कार्यकाल के दौरान मंत्री नहीं बन सकते। जब तक दोबारा चुनाव जीत कर विधायक न बन जाएं।

यदि विधानसभा अध्यक्ष इन्हें अयोग्य घोषित कर देते तो ये मंत्री नही बन पाते, लेकिन इनमें से कुछ विधायकों को नई भाजपा सरकार में मंत्री बना दिया गया। इसे गैरकानूनी बताते हुए उक्त विधायकों के मंत्री पद वापस लेने का आग्रह किया गया। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने अनावेदकों को नोटिस जारी किए।

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