रखरखाव के अभाव में बदहाल हो रहा इंदिरा गांधी वन चेतना केंद्र

By | December 3, 2022

 

ब्यूरो चीफ़ आरिफ़ मोहम्मद

*गायब हो गए रुद्राक्ष में पारिजात के वृक्ष*

*आकर्षित लगने वाली पशु आकृति अब लग रही भयावह*

कानपुर देहात, जनपद में वन विभाग प्रतिवर्ष पौधारोपण अभियान चलाकर करोड़ों पौधों का रोपण किया जाता है किंतु इनके देखरेख के अभाव के साथ विभाग अपनी पुरानी परियोजनाओं को संभालने में विफल हो रहा है इससे करीब तीन दशक पूर्व मैंथा क्षेत्र के औनाहां गांव में बनाया गया इंदिरा गांधी वन चेतना एवं मनोरंजन केंद्र इन दिनों अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है। विभागीय उपेक्षा के चलते लाखों की लागत से बने वन चेतना केंद्र पूरी तरह बर्बादी के कगार पर है।
जिला प्रशासन प्रतिवर्ष सघन वनीकरण अभियान चलाने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित करता है इसके तहत प्रतिवर्ष करोड़ों पौधों का रोपण होता है लेकिन विभागीय अनदेखी से पौधारोपण के बाद उनके संरक्षण के लिए कोई कार्य न होने से प्रतिवर्ष पौधे सूख जाते हैं। वही वन विभाग अपनी पुरानी परियोजनाओं को सवारने में पूरी तरह संजीदा नही है । इससे मैथा क्षेत्र के औनाहां गांव में बनवाया गया इंदिरा गांधी वन चेतना एवं मनोरंजन केंद्र पूरी तरह बदहाल हो रहा है। चेतना केंद्र को बनाने के लिए पूर्व विधायक राजा रघुनाथ सिंह अपनी पैतृक जमीन से 5 एकड़ जमीन दान दी थी। जिस पर वर्ष 1991 में तत्कालीन मंडलायुक्त डीके भौनवाल ने पहुंचकर रुद्राक्ष व पारिजात, इलायची जैसे दुर्लभ ब्रक्ष लगाए थे लेकिन वन विभाग की उदासीनता के चलते वन चेतना केंद्र में रोपित किए गए दुर्लभ पौधे आज गायब हो चुके है। केवल पारिजात का एक पौधा शेष बचा है। वही मनोरंजन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए वन विभाग द्वारा हाथी, जिराफ, ऊट की पशु आकृतियां बनाई गई थी जिनको हरी हरी बेलों से सजाया गया था । जिसके बाद वहां पहुंचने पर यह पसु आकृतियां मनमोहक व सुंदर लगती थी लेकिन सिंचाई के अभाव में पशु आकृतियों पर फैली बेले गायब हो चुकी है। इससे अब यह लोहे के सरिया के कंकाल मात्र दिखाई दे रहे हैं जो डरावने लग रहे हैं। इतना ही नहीं पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए इंटरलॉकिंग सड़कों के साथ कमल तालाब भी बनाया गया था बच्चों के खेलने के लिए झूले स्लीपर आदि की व्यवस्था की गई थी जिस पर करोड़ों रुपए पानी की तरह पाया गया था लेकिन आज वन चेतना केंद्र पूरी तरह उजड़ चुका है। इससे करोड़ों की लागत से बना वन चेतना केंद्र पूरी तरह बदहाली का शिकार है।

*वन चेतना केंद्र के बगल में स्थित मघई झील में आते थे प्रवासी पक्षी*
वन चेतना केंद्र के ठीक बगल में जनपद की सबसे बड़ी इटेली झील व कड़री झील के मध्य में मघई झील स्थित है। लगभग 48 हेक्टेयर में फैली मघई झील प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाती थी। सुबह शाम मघई झील के आसपास साइबेरियन पक्षी बिहार करने के लिए आते थे। तथा झील में कमल पुष्प खिलते थे। सुबह-शाम पक्षियों का कलरव लोगों के मन को मोह लेता था जिसको लेकर मघई झील व बन चेतना केंद्र में घूमने के लिए बाहरी लोग भी आने लगे थे। केंद्र की बर्बादी के कारण पर्यटकों के आने में कमी होने लगी और आज पूरी तरह माहौल बदला हुआ है।

*पर्यटन केंद्र स्थापित होने के बाद बने इंजीनियरिंग कॉलेज भी हुए बंद*
लाखों रुपए की लागत से बन चेतना केंद्र के पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के बाद इस क्षेत्र को विकास की नई गति मिली थी । जिसके चलते वन चेतना केंद्र के बगल में दो इंजीनियरिंग कॉलेज भी खुले जहां पढ़ने वाले इंजीनियरिंग छात्र वन चेतना केंद्र को भी देखते थे और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव करते थे लेकिन विभागीय उपेक्षा के कारण वन चेतना केंद्र का प्राकृतिक सौंदर्य गायब हुआ और मनोरंजन केंद्र वीरान हो गया तो इंजीनियरिंग कालेजों पर भी उसका सीधा असर पड़ा और आज के हालात यह कि दोनों इंजरिंग कॉलेजों में ताला लटक गया है जिससे क्षेत्र की विकास व शिक्षा दोनों व्यवस्थाओं पर पूरा प्रभाव पड़ा है।

*जमीन के भूखे भेड़ियों ने निगल ली झील की जमीन*
इंदिरा गांधी वन चेतना केंद्र के बगल में प्राकृतिक सौंदर्य को बिखेरने वाली मघई झील पर भी अवैध कब्जे दारो का साया है। मघई झील के आसपास लोगों ने मकान बनाने शुरू कर दिए हैं झील के अंदर तक पिलर बनने लगे हैं तो कई जगह उसकी सुंदरता को बिगाड़ने के लिए बनाए गए बांध आज भी सुरक्षित हैं मछली पालन में किए गए पट्टों के बाद लोगों ने झील में कई जगह बांध बना दिए हैं और उसमें सिंघाड़े की बेल डाल रहे हैं जिससे झील अपना अस्तित्व खो रही है जबकि जनपद की सबसे बड़ी झील इटली का ओवरफ्लो पानी मघई झील ही संचित करती थी। जिसमें बाहर से आने वाले प्रवासी व साइबेरियन पक्षियों का कलरव सुनते ही लोगों का मन शांत हो जाता था सूर्य की किरणें पड़ते ही जल से निकलने वाली प्रतिरोधक किरने लोगों का मन मोह लेती थी। लेकिन जमीन के भूख में लोग झील को भी नहीं छोड़ रहे हैं और धीरे-धीरे उस पर कब्जा करने का सिलसिला जारी हो गया है तहसील प्रशासन अवैध कब्जे पर कार्यवाही करने के लिए कतरा रहा है।

प्रभागीय वन अधिकारी एके द्विवेदी ने बताया इंदिरा गांधी वन चेतना केंद्र को नर्सरी के रूप में डिवेलप किया जा रहा है जिसके लिए शासन से बजट भी मिल गया है जल्द ही वहां की व्यवस्था कराई जाएंगी और फिर से नई सुंदरता और कलेवर के साथ इंदिरा गांधी वन चेतना केंद्र को सुसज्जित किया जाएगा। कार्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध प्रभावी दंडात्मक कार्यवाही भी की जाएगी।