डायरेक्टर नरेंद्र सिंह रघुवंशी के कारण खतरे में मैनिट के विदयार्थियों का भविष्‍य PM के स्किल इंडिया की धज्जियां उड़ा रहे रघुवंशी: विजया पाठक

By | March 3, 2022

विजया पाठक:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद शिक्षा में स्किल डेवलपमेंट की बात करते हैं, कहते हैं स्किल इंडिया से देश की तस्वीर बदल रही हैं, वहीं मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के डायरेक्टर नरेंद्र सिंह रघुवंशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने में लगे हैं। मैनिट भोपाल के बी.टेक. अंतिम सेमेस्टर के छात्रों को इंटर्नशिप (जिससे स्किल डेवलपमेंट) कर वे देश व विदेश के नामी संस्थाओं में काम कर देश का, संस्थान का नाम रोशन करते पर उल्टा उनको हतोसाहित करने के लिए इन छात्रों के लिये नैपटेल (NPTEL) के सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया।

इंजीनियरिंग के अंतिम सेमेस्टर में छात्र इंटर्नशिप करके आगे नौकरी में जाते हैं। अपना करियर बनाते हैं, जिन छात्रों की इंटर्नशिप नहीं लगती वो रेगुलर क्लासेस लेते हैं पर मैनिट में उल्टी गंगा बह रही है। इंटर्नशिप में छात्र नौकरी के समान ही विभिन्न कम्पनीयों में 8-10 घंटा कार्य करते हैं। पर मैनिट डायरेक्टर ने अंतिम सेमेस्टर में नैपटेल के 06 कोर्स करने की और सर्टिफिकेशन प्राप्त करने की अनिवार्यता कर दी। पहली बात अंतिम सेमेस्टर में नैपटेल का सर्टिकेशन होना ही नहीं चाहिए क्योंकि अगर कोई छात्र इसमें पास नहीं हो पाता तो इसमें सप्लीमेंट्री परीक्षा की कोई विकल्प नहीं है।

देश के अन्य राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में, आईआईटी में सातवें सेमेस्टर तक का ही प्रावधान है। नैपटेल एक पोर्टल हैं जिसमें देश के विभिन्न बड़े संस्थाओं के शिक्षक अपने लेक्चर डालते हैं, इसका मूल उद्देश्य उन छात्रों के लिए है जिनके संस्थाओं में सुविधाओं की कमी है पर मैनिट तो राष्ट्रीय स्तर का संस्थान है। और तो और नैपटेल की परीक्षा देने छात्रों को विभिन शहरों में देने जाना होगा। चूकि वे कहीं और इंटर्नशिप कर रहे हैं।

नैपटेल के 6 कोर्स के लिए इन्हें अतिरिक्त 6000 रुपए की फीस देनी होगी। नैपटेल के कुछ कोर्स एम टेक के लेवल के हैं तो आखिर बी टेक के छात्रों पर यह क्यों लादा जा रहा है? निश्चित तौर पर यह सारे छात्र जो कि प्रधानमंत्री के स्किल डेवलपमेंट की राह पर चलकर इंटर्नशिप चुनी वो फेल होकर अपना करियर खत्म कर लेंगे। हास्यास्पद बात तो यह है कि संस्थान के सिविल, केमिकल और एमएसएमई विभागों ने छात्रों को सूचना ही नहीं दी जिसके कारण नैपटेल की रजिस्ट्रेशन डेट ही निकल गई।
संस्थान के छात्रों से लड़ते भिड़ते रहते हैं डायरेक्टर नरेंद्र सिंह रघुवंशी
एक शैक्षणिक संस्थान में डायरेक्टर उस संस्थान के पिता समान होते हैं लेकिन यहां पिता ही अपने बच्चों का नुकसान करवाने में लगे हैं। अभी 2 महीने पहले भी संस्थान के रिसर्च स्कॉलर्स (पीएचडी) छात्रों ने अपनी मांगों को लेकर बड़ी स्ट्राइक की थी। उस समय भी डायरेक्टर न तानाशाही पूर्ण रवैया अपनाते हुए रिसर्च स्कॉलर्स का मानदेय बंद कर दिया था।

इनकी तुगलकी आदत से मैनिट भोपाल बर्बाद सा हो गया है। अनियमितता का आलम तो यहां देखने को ही बनता है। एमटेक के विद्यार्थियों को भी जिनका इंटर्नशिप 6-11 महीने की लगती है। अब इन छात्रों को तृतीय सेमेस्टर और अंतिम सेमेस्टर में कुल 04 आईईईई के रिसर्च पेपर लिखने होते हैं, जिसका सदुपयोग वास्तविक तौर पर संस्थान की फेकल्टी इस्तेमाल करती है। एमएचआरडी की 2018-19 बकायदा एक निर्देश निकला था जिसमें 6 महीने की इंटर्नशिप को बढ़ावा देना चाहिए। अब मंत्रालय के निर्देश को मैनिट के डायरेक्टर ही नहीं मान रहे हैं।

एम.बी.ए. घोटाला- एक नियम के हिसाब से 6.5 सीजीपीए से कम अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को डिग्री अवार्ड नहीं होती थी। वर्ष 2020 में एक छात्रा की डिग्री रोकी गई तो उस छात्रा ने मैनिट डायरेक्टर नरेंद्र सिंह रघुवंशी के कार्यकाल में 15-20 छात्रों लोगों की सूची थमा दी, जिनको 6.5 सीजीपीए से कम अंक प्राप्त होने के बाद भी डिग्री दी गई।
मशीनी उपकरण खरीदी में भ्रष्टाचार और अनियमितता
मैनिट में मशीनी उपकरण खरीदी में धांधली का बड़ा मामला सामने आया है।

मैनिट में पिछले कुछ सालों में करोड़ों रुपयों की खरीदी हुई, इसमें कुछ फर्जी कंपनी, फॉर्म्स ने लाखों की मुनाफाखोरी की है। इस हेराफेरी के तीन अहम किरदार हैं, एक मां, एक बेटा और मैनिट प्रबंधन। एक- बेटा ने एक मशीन 13 लाख रु. में खरीदी। दूसरा- उसकी मां, जिसने बेटे से यही मशीन 14.33 लाख रु. में ली। तीसरा- मैनिट प्रबंधन, जिसे मां से मैनिट ने 18 लाख रु. में यही मशीन खरीदी।

असल बात यह है कि इस पूरे लेन-देन में एक ही परिवार की तीन फर्म लगी हुई हैं। बड़ी बात यह है कि खरीदी के लिए तीनों फर्म्स के कोटेशन लगाए गए, जिन पर एक जैसे हस्ताक्षर और मोबाइल नंबर थे। मैनिट प्रबंधन ने कागजी खानापूर्ति के बाद इन्हीं में से एक फर्म को सप्लाई का जिम्मा दे दिया। इन फर्म्स को एक नहीं, बल्कि अनेक वर्क ऑर्डर दिए गए। इन सभी फॉर्म जिन्होंने मिनट में कोटेशन डाला है उनके पते फर्जी हैं। इस हेराफेरी के कारण मैनिट को मशीनें 27% से 59% तक महंगी मिलीं। फिर भी मैनिट ने इनकी कभी भी जांच नहीं की। इस परिवार की करतूत जब आरटीआई के जरिए खुली तो जीएसटी विभाग ने इन फर्म्स पर पेनाल्टी लगाई। इसके बावजूद मैनिट ने इन पर कोई कार्रवाई नहीं की।