भोपाल । मध्य प्रदेश में सियासी घमासान के बीच कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सत्ता की भूख के चलते विचारधारा से समझौता किया। उन्होंने कहा कि केंद्र में मंत्री पद पाने के लिए सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को धोखा दिया। सिंह ने ये भी कहा कि ज्योतिरादित्य की दादी विजायराजे सिंधिया ने उन्हें भी जनसंघ में शामिल होने का ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने विचारधारा की खातिर इससे इनकार कर दिया था।
सिंह ने शनिवार को भोपाल में कहा, “मैंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराज (क्षमा करें, क्योंकि मैं खुद एक रियासती पृष्ठभूमि से आता हूं, मैं उन्हें ज्योतिरादित्य कहकर संबोधित नहीं कर सकता) कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा देंगे और किसके लिए? राज्यसभा जाने और मोदी-शाह के नेतृत्व में कैबिनेट मंत्री बनने के लिए! यह दुखद है। मुझे कभी उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। लेकिन, कुछ लोगों के लिए हंगर ऑफ पॉवर यानी सत्ता की भूख विश्वसनीयता और विचारधारा से ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
10 साल सत्ता के बिना पार्टी के लिए काम किया
दिग्विजय ने कहा, “मैं 2004 से 2014 तक सत्ता से बाहर रहकर कांग्रेस के लिए काम करता रहा। मुझे मंत्रिमंडल में शामिल होने को कहा गया, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से आसानी से लोकसभा जा सकता था, लेकिन मैंने मना कर दिया और कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली। मेरे लिए विश्वसनीयता और विचारधारा महत्वपूर्ण है, जो दुर्भाग्य से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई है।”
संघ ने पहले जेपी और अब नीतीश को मूर्ख बनाया
सिंह ने कहा, “मैं संघ-भाजपा से बिल्कुल सहमत नहीं हूं, लेकिन विचारधारा के प्रति उनके समर्पण की तारीफ करता हूं। आरएसएस ने 1925 से 90 के दशक तक अपने अंतिम लक्ष्य “हिंदू राष्ट्र” को भुलाए बगैर दिल्ली की सत्ता में आने के लिए इंतजार किया। उन्होंने सफलतापूर्वक समाजवादियों और विशेष रूप से जेपी और अब नीतीश कुमार को एक आरएसएस प्रचारक को पीएम बनाने के लिए मूर्ख बनाया। मैंने ऐसे आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी देखा है, जिन्होंने जीवन भर आरएसएस में काम करने के लिए अपने परिवार तक को छोड़ दिया।”
मोदी आरएसएस की नई नस्ल के प्रचारक
दिग्विजय ने कहा, “अब आरएसएस के नए प्रचारक बदल गए हैं। नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारकों की नई नस्ल का सबसे शानदार उदाहरण हैं। मैं मोदीजी का प्रशंसक नहीं हूं, लेकिन हर मुद्दे और मौके पर बिना समझौता किए देश का ध्रुवीकरण करने के उनके साहस की प्रशंसा करता हूं। उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि भारत के सनातन धर्म और हिंदू धर्म की मान्य परंपराओं से बुने गए सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने से देश को क्या नुकसान हो रहा है?”
विजयाराजे मुझे जनसंघ में शामिल करना चाहती थीं
दिग्विजय ने कहा, “राजमाता विजयाराजे सिंधियाजी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। वे चाहती थीं कि मैं 1970 में जनसंघ में शामिल हो जाऊं। उस समय मैं राघौगढ़ नगर पालिका का अध्यक्ष था। मैंने गुरु गोलवलकर की किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ को पढ़ने के बाद इसके लिए मना कर दिया। मैं सनातन धर्म और भाईचारे में विश्वास करता हूं। मेरा धर्म ‘इंसानियत’ है, जो हिंदुत्व की विचारधारा के विपरीत है।”
