जबलपुर/भोपाल। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के जबलपुर के महासचिव अंशुल सिंह ने आज मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखकर कहा है कि जिला अध्यक्ष विजय रजक द्वारा मेरे विरुद्ध जो निष्कासन की कार्रवाई की गई है वह नियम विरुद्ध और पार्टी संविधान के मुताबिक नहीं है, मैंने पार्टी के विरुद्ध कोई काम नहीं किया है। पत्र में जिला अध्यक्ष पर मनमानी करने का आरोप भी लगाया गया है। अंशुल सिंह ने कहा है कि निष्कासन से पहले न तो उन्हें आरोप की जानकारी दी गई और ही नोटिस मिला।
जिला महासचिव अंशुल सिंह ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान बताया कि निष्कासन की जानकारी मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से मिली, जबकि पार्टी के नियम के अनुसार पहले नोटिस दिया जाता है। जिलाअध्यक्ष को मेरे विरुद्ध कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। मैं आज भी एनएसयूआई का कार्यकर्ता हूं। मुझे निष्कासित करने की कार्रवाई प्रदेश प्रभारी के अलावा और किसी को नहीं है।
जिला महासचिव अंशुल सिंह ने मुख्यमंत्री कमलनाथ, एनएसयूआई प्रदेश प्रभारी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर नियम विरुद्ध किये गए निष्कासन को रद्द करने की मांग सहित जिला अध्यक्ष विजय रजक को कारण बताओ नोटिस जारी करने की अपील की है।
रादुविवि में चल रही अनियमितताओं को लेकर उच्च शिक्षा मंत्री को दिए ज्ञापन के बाद बढ़ा मतभेद
जिला महासचिव अंशुल सिंह 23 जुलाई को रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में चल रही अनियमितताओं को लेकर जबलपुर में पदस्थ उच्च शिक्षा के अतिरिक्त संचालक को मंत्री जीतू पटवारी के नाम ज्ञापन सौंपा था। जिसमें आरोप लगाया गया था की रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में कुलपति द्वारा आरएसएस पदाधिकारियों से मिलकर अतिथि विद्वान भर्ती में आरएसएस के लोगों को लाभ दिया जा रहा है। यह उच्च शिक्षा और यूजीसी के नियमों की अवहेलना और स्वायतता का दुरुपयोग है। जबकि उच्च शिक्षा मंत्री का स्पष्ट निर्देश है कि विश्वविद्यालयों में किसी भी विचारधारा को बढ़ावा न दें।
इस ज्ञापन के बाद ही जिला महासचिव अंशुल सिंह और विजय रजक के बीच मतभेद बढ़ गए। जिसके बाद जिला अध्यक्ष ने ऊपर के पदाधिकारियों से चर्चा किये बिना ही अपने स्तर पर निष्कासन आदेश जारी कर अखबारों में प्रकाशन के लिए भेज दिया।
आयुर्वेद कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य के भ्रष्टाचार को किया था उजागर
एनएसयूआई के जिला महासचिव अंशुल सिंह गत 1 जुलाई को आयुर्वेद कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ. रविकांत श्रीवास्तव पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए थे। पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने बताया था कि महाविद्यालय की बागडोर जिस व्यक्ति के ऊपर है वह 2015 में विभागीय पदोन्नति परीक्षा में प्राचार्य पद के लिए अयोग्य घोषित हो चुके हैं फिर भी राजनैतिक पकड़ के चलते प्रभारी प्राचार्य का पद पर बने हुए हैं। डॉ. रविकांत श्रीवास्तव पर आरोप लगाया था कि उनके द्वारा बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए एक एकड़ जमीन में 40 फीट की रोड सार्वजनिक कर दी। इसी तरह कुछ वर्षों पूर्व महाविद्यालय का नवनिर्मित भवन जो 4 करोड़ 81 लाख 54 हजार रुपए की लागत से तैयार हुआ था वह जर्जर हालत में है।
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