एक कोशिश ऐसी भी…

By | January 13, 2023

मनीष गुप्ता, editor-in-chief समाचार भारती

हमारे द्वारा किए गए समाज सेवा के कुछ केस ऐसे होते हैं जो सोशल मीडिया पर शेयर करते ही हमारे अकाउंट को ब्लॉक कर दिया जाता है।
इसलिए लंबे इंतजार के बाद वापस अपने केसेस को शेयर करने का मौका मिलता है।
बेहद दुखद एवं मानवता को रिश्तो को शर्मसार एक बार फिर से मानवता को शर्मसार होते हुए देखा नहीं गया। तो फिर बीड़ा उठाया अनजान व्यक्ति से रिश्ता कायम करने का, मानवता को बदनाम ना होने देने का
* किसने क्या किया , और किसने क्या नहीं किया इन बहसबाजीयो से कहीं बेहतर यह है कि हम यह सोचे कि हमने क्या किया।
3 दिन पहले दोपहर में समाजसेवी ज्ञान तिवारी जी की कॉल आई थी मेरे पास उन्होंने पूछा यदि आप शहर में है तो एक केस है उसको देख लीजिए। अब शहर में भी थे और दूसरे केस पर थे उस केस को निपटा कर तुरंत इंदिरा नगर पहुंचे बताए गए पते पर।
जहां पर पता चला पहुंचकर हमें की…
* एक लगभग 75 वर्ष बुजुर्ग पहली मंजिल के एक कमरे में पड़े हैं जिनका देहांत हो गया है।
* जब हाथ लगाया तो पता चला कि जिस गद्दे पर वह सोए थे वह गद्दा पूरी तरह से भीगा हुआ था।
* सरकारी नौकरी में थे।
* शादी नहीं हुई थी।
* घर नया और बहुत शौक से बनवाया था।
* इस घर में अपने भतीजे और भतीजी के साथ रहते थे ।
* भतीजी मानसिक रूप से विक्षिप्त थी।
* दो सगी बहने थी , परंतु बोलचाल नहीं थी।
* नए घर होने के बावजूद घर की स्थिति कूड़े घर जैसी थी।
* जाहिर है उनका शरीर साथ देता नहीं होगा और बाकी लोगों ने ध्यान दिया नहीं।
* बंद भाषा में लोगों से पता चला कि प्रॉपर्टी का मसला है इसलिए घरवाले बातचीत नहीं करते हैं।
*यह केस इंदिरानगर का है।
* तस्वीर बयां कर रही है कि किस कदर ठंड ने इन्हें तोड़ा होगा ।
* करवट तक नहीं ले पाए ।
* पूरा शरीर अकड़ा था ।
* ऊपर शर्ट की जेब में प्लास्टिक का ग्लास था।
* मन पत्थर का हो गया था हाथ कांप रहे थे बुजुर्गों को उठाकर एंबुलेंस में रखने वक्त
* प्रभु ऐसे दिन किसी को नहीं दिखाएं।
* क्या परिवार ऐसे ही दिनों के लिए होता है?
* सरकारी नौकरी में होने के बावजूद , अच्छा घर होने के बावजूद , परिवार होने के बावजूद , ऐसी क्या बात रही होगी जो अंत समय में बुजुर्ग इतने अकेले थे
* क्या होता जा रहा है हम लोगों की परवरिश को , हमारे समाज को , हमारी संस्कृति को, हमारे संस्कारों को विचारणीय है।
* बहुत पढ़ा लिखा कर चकाचौंध वाली दुनिया बसा कर अंता हमें क्या मिल रहा है और हम क्या खो रहे हैं।
* क्या खोकर हमें क्या मिल रहा है?
* क्या कीमत चुका कर क्या मिल रहा है हमें या बेहद विचारणीय है
खैर बुजुर्ग व्यक्ति को उनके घर से रेस्क्यू करके सा सम्मान हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से बैकुंठ धाम में सूरज ढलते – ढलते अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से कराया।
हम तो उस प्रभु के शुक्रगुजार हैं जिन्होंने हमें इतना काबिल बनाया , हमारी बहन में एक सोच विकसित की , जिनका अपना कोई नहीं है या अपने होते हुए भी अपने नहीं हैं। हमारे कंधे उनके वारिस के बनते हैं।
उन सभी लोगों का भी धन्यवाद जो किसी विश्वास के साथ हमें कॉल करते हैं और सेवा देते हैं

ऐसी ही किसी वास्तविक सेवा के लिए संपर्क कर सकते हैं संपर्क सूत्र वर्षा वर्मा 831 819 3805