वीडियो गेम्स की दुनिया में उलझता बचपन, दावं पर है भविष्य!

By | June 12, 2022

(अर्चना अवस्थी)

वीडियो गेम्स की दुनिया एक ऐसी दुनिया है जहां आप अपनी मर्जी से वह सब कर सकते हैं, जो आप अपनी असल जिंदगी में नहीं कर पाते।  मनोरंजन के लिए बनाए गए इन वीडियो गेम्स में अब बहुत ज्यादा बदलाव आ चुके हैं बदलाव ऐसे हैं जो सीधा आपके मन और मस्तिष्क पर काफी असर डाल रहे हैं खासकर किशोरावस्था और युवावस्था में,  स्मार्टफोंस जबसे दुनिया भर में प्रचलन में आए हैं तबसे इन वीडियो गेम्स का स्तर काफी बढ़ गया है नई तकनीक पर आधारित हो, कार रेसिंग हो, या फिर मारधाड़ से भरपूर इन वीडियो गेम्स  बच्चों पर इसका विपरीत असर ज्यादा हो रहा है।

भारत समेत दुनिया भर में क्या बच्चे हो क्या बड़े हो वीडियो गेम्स हर कोई खेलता है लेकिन एक कहावत सच साबित होती है कि कोई भी चीज हद से ज्यादा हानिकारक होती है, वर्तमान समय में देखा जाए तो दुनिया भर में वीडियोगेम्स के लिए बच्चों का क्रेज हमेशा से रहा है। चाहे वो वीडियो गेम्स की सुरुआत का मारियो रहा हो या अब के समय विभिन प्रकार के नए नए गेम हो जिसमे पब्जी ज्यादा पसंद जाने वाला गेम है लेकिन ये क्रेज धीरे धीरे जिद्द और लत का रूप लेता जा रहा है।

मगर अब कुछ ऐसे गेम्स भी आ चुके हैं जिनको खेलने के बाद बच्चों के मस्तिष्क पर ऐसा असर हो रहा है कि वह असल जिंदगी में भी उसे जीना शुरु कर रहे हैं, अभी हाल ही की लखनऊ की एक घटना है जिसमे एक 14-15 साल के बच्चे ने अपनी माँ को वीडियो गेम न खेलने देने के कारण गोली मार दी व उनकी लाश को दो दिन छिपाये रखा इसके साथ ही उसने अपनी छोटी बहन को भी डरा कर रखा की वो ये बात किसी को न बताये।

यह सिर्फ एक उदहारण है इससे मिलती जुलती न जाने कितनी घटनाये होती रहती है। इसी तरह ब्लू व्हेल नमक एक गेम ने बहुत से बच्चों की जाने ली थी, जिसकी आखिरी स्टेज आने पर बच्चे को मजबूरन सुसाइड करना होता था और इस गेम के कारण विश्व भर के बहुत से बच्चों की जान चली गयी थी।

अब प्रश्न ये उठता है कि क्या बच्चो के हाथ में मोबाइल देना या उन्हें नए नए आधुनिक गेम्स दिलवाना इस समस्या का कारण है? या और भी कारण है जो इस स्थिति को और भी गंभीर बना रहे हैं?

बेशक तकनीकी इस प्रकार के मानसिक विकारों का प्रमुख कारण है परंतु अन्य पारिवारिक व सामाजिक कारण भी उतने ही जिम्मेदार हैं। ठीक 1 या 2 पीढ़ी पहले की बात करे तो माँ बाप अपने बच्चों का ध्यान रखते थे, उनके हर प्रकार के व्यवहार और सोच पर नज़र रखते थे उनको संस्कार देने में माता पिता का अहम रोल था। मगर आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में मां बाप वह समय अपने बच्चों को नहीं दे पाते जिनकी उन्हें दरकार है इसी वजह से बच्चे अपना ज्यादा वक्त मोबाइल स्क्रीन पर गेम में बिता रहे हैं

माता पता अपने बच्चों पर नजर नहीं रख पाते। बच्चे अपना अकेलापन और खाली समय वीडियो गेम्स या मोबाइल देख कर बिताते है जो बाद में एक लत बन जाती है और तब किसी के हस्तक्षेप करने की स्थिति में वो गंभीर कदम उठा लेते है।

इसके साथ ही स्कूलों में भी आधुनिक शिक्षा का बोल बाला है आजकल स्कूल बच्चों को संस्कार और भारतीय मूल्यों की शिक्षा देने में असमर्थ है व एकांकी परिवार होने के कारण उन्हें बड़े बुजुर्गों का साथ भी नहीं मिल पाता है जिससे वे सामाजिक हो सकें।जिसके कारण समाज में विभिन्न प्रकार की अस्थिरता व मानसिक विकारों का रूप ले लिया है जो दिन प्रतिदिन भयावह ही होती जा रही है।