आज की महिलाओं को केवल दृढ़ प्रतिज्ञा की आवश्यकता: अर्चना अवस्थी

By | June 7, 2022

अर्चना अवस्थी; 

भारतवर्ष जहाँ महिलाओं का इतिहास रहा है। जहा कन्या भ्रूण हत्या, बल विवाह, बहुविवाह, दहेज़ प्रथा सतीप्रथा जैसी कुरीतियों ने भारतवर्ष को आगे बढ़ने से रोका वहीँ अपाला, गार्गी, रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मी बाई जैसी महँ शक्तियों ने जन्म लिया। जिन्होंने ये विश्वास दिलाया कि महिलाओं को केवल दृढ़ प्रतिज्ञा की आवश्यकता है।

अब यदि हम एक पीढ़ी या दो पीढ़ी पुराणी बात करें तो महिलाओं ने बहोतइ परेशानियां झेली है और कुरीतियों का शिकार रही हैं जैसे इस पुरुष प्रधान देश में महिलाओं को कहाँ बनाने वाली बावर्ची व बच्चे को जनम देने या यु कहें उनके वंश को आगे बढ़ने का एक माध्यम से ज्यादा कुछ नहीं देखा। अपने से उच्च कोटि या समतुल्य पुरूषों ने महिलाओं को कभी देखा ही नहीं। महिलाओं को आर्थिक रूप से बहुत कमजोर बनाया गया। जिससे वे अपना सर न उठा सकें और दूसरों पर आश्रित बनी रहे।

परंतु इन परिस्थितियों में भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के साथ किसी महिला ने तो पहले एवेरेस्ट चढ़ने की पहल की होगी,किसी महिला ने तो डॉक्टर बनने के लिए डॉक्टरी की पढाई की होगी, किसी लड़की में तो कदम बढ़ाया होगा क्रिकेट खेलने के लिए, किसी ने तो उड़ने के सपने देख पहला हवाई जहाज उदय होगा…। और उन सभी ने उन्ही परिस्थितियों में अपने को मजबूत बनाया होगा।

पिछली पीढ़ी की इसी नींव के कारण आज महिलाएं अवसर पा रही है, पढाई कर रहीं है, विदेशों में नाम रोशन कर रहीं हैं, राजनीती में आ रहीं हैं, अपने शौक के अनुसारकपड़े पहन रहीं हैं, कमा रहीं हैं, बड़ी बड़ी कंपनियों को अपने दम पर चला रही हैं। परंतु इसका अर्थ ये बिलकुल भी नहीं है कि उनकी समस्याएं समाप्त हो गयी हैं कुछ पुराणी कुरीतियां बची रह गयी हैं व कुछ नयी समस्याओं ने जन्म ले लिया है आज भी एक महिला का प्रमोशन होने पर उसे अलग रंग ही दिया जाता है आज भी किसी महिला द्वारा कुछ नया या अलग सोचने और विचार रखने पर उसके चरित्र पर सवाल उठाया जाता है, आज भी महिला के स्कूटी या कार चलाने पर उसको कमेंट सुनने को मिलते हैं, आज भी महिलाओं को उनकी वेश भूषा से परखा जाता है। और तो और आज भी महिलाओं को खुद की पहचान से नहीं जाना जाता है।

कुछ नयी समस्याओं की बात करें तो वर्कप्लेस या ऑफिस में महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार, घर व ऑफिस की दोनों की जिम्मेदार व सामंजस्य व बच्चों की जिम्मेदारी जैसी समस्याएं प्रमुख हैं।

अब यदि बात की जाये की महिलाएं कमजोर होतीं है तो भारतवर्ष में दुर्गा को शक्ति के रूप में जाना जाता है। यही वास्तविक उदाहरण की बात की जाये तो जब एक स्त्री के बच्चे को जन्म देती है तो वह दर्द 20 हड्डियों के एक साथ टूटने के बराबर दर्द होता है। फिर भी उन्हें अबला के नाम से संबोधित किया जाता है।
अर्चना अवस्थी