ब्यूरो चीफ़ आरिफ़ मोहम्मद कानपुर
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के प्रसार निदेशालय के समन्वयक/ निदेशक प्रसार डॉ अरविंद कुमार सिंह ने गर्मी के मौसम में लौकी की वैज्ञानिक खेती विषय पर किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की है। डॉक्टर सिंह ने बताया कि लौकी कद्दू वर्गीय महत्वपूर्ण सब्जी है।उन्होंने कहा कि औषधि की दृष्टि से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने,खांसी या बलगम दूर करने में अत्यंत लाभकारी है। उन्होंने बताया कि इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खाद्य रेशा,खनिज लवण के अलावा प्रचुर मात्रा में अनेकों विटामिन पाए जाते हैं। डॉक्टर सिंह ने बताया कि इसकी खेती पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक विस्तृत रूप में की जाती है।
उन्होंने कहा कि निर्यात की दृष्टि से सब्जियों में लौकी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया की लौकी के बीज के अंकुरण के लिए 30 – 35 डिग्री सेंटीग्रेड और पौधों की बढ़वार के लिए 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। उन्होंने किसानों को सलाह दी है लौकी की खेती के लिए बलुई दोमट तथा जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी जिस का पीएच मान 6 – 7 हो सर्वोत्तम होती है। उन्होंने बताया कि लौकी की बुवाई का सर्वोत्तम समय 25 फरवरी से मार्च के प्रथम सप्ताह तक सर्वोत्तम है।
इस की उन्नतशील प्रजातियां जैसे काशी गंगा, काशी बहार, आर्का बहार, पूसा नवीन, पूसा संदेश, नरेंद्र रश्मि प्रमुख उन्नतशील प्रजातियां है। उन्होंने बताया कि लौकी का बीज 2.5 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। डॉ सिंह ने बताया कि लौकी से अच्छी पैदावार लेने के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस तथा 35 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
उन्होंने बताया कि एक स्थान पर दो-तीन बीज 4 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करना चाहिए। डॉ अरविंद कुमार सिंह ने बताया यदि किसान भाई वैज्ञानिक विधि से लौकी की खेती करते हैं। तो 400 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होगी। जो किसान भाइयों के लिए लाभ एवं आय की दृष्टि से अच्छी है।
