
लखनऊ/रायबरेली/डलमऊ। जीवन जब विषम परिस्थितियों में घिरा होता है, तब आम हो या खास व्यक्ति सबसे पहले वह अपने बारे सोचता है। गिने-चुने ही ऐसे होते हैं, जो खुद से पहले किसी और के बारे सोचते हैं। इनसान की मदद करने की बात हो तो फिर भी लोग मिल जाते हैं, लेकिन जानवरों के लिए सोचने और करने वाला शायद ही कोई होता है।
इन्हीं गिने चुने लोगों में हैं डलमऊ रायबरेली के अंशुमान। पेशे से राज्यसभा टीवी में पत्रकार अंशुमान बताते हैं कि वो कुछ दिनों से देख रहे थे कि आवारा पशुओं का व्यवहार हिंसक होता जा रहा था और इसकी वजह थी भूख। फिर उन्होंने इन जानवरों की भूख मिटाने का प्रण किया और यह बदस्तूर जारी है। मुराई बाग़ से डलमऊ के बीच में उन्हें जो भी बेसहारा जानवर मिलते हैं, उन्हें वह रुक-रुक कर खाना खिलाते हैं।

लॉक डाउन में जब लोग जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचा रहे हैं, तो ऐसे में इन्हें ख्याल आया कि जुबान वालों तक खाना तो पहुंच रहा है, लेकिन बेजुबान भूखे रह जा रहे हैं।
लोग बेजुबानों की भी सोचें
अंशुमान कहते हैं कि इस अभियान को चलाने के पीछे मेरा उद्देश्य है कि लोग इससे प्रेरणा लें और बेजुबानों के लिए भी सोचें और कदम उठायें। जुबान वाले तो अपनी बात कह भी देते हैं, लेकिन बेजुबानों न तो कह पाते हैं और न ही उनकी भाषा कोई समझ पाता है।

अंशुमान को जानवरों के लिए काम करने का इससे बेहतर अवसर दूसरा नहीं लगा। इसलिए इन्होंने इस काम की पहल की और अभियान का रूप देना चाहते हैं।