ब्यूरो चीफ़ आरिफ़ मोहम्मद
कानपुर देहात,डॉ उमेश कुमार गुप्ता कृषि अधिकारी ने बताया कि मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। सघन कृषि पद्धति के विकास तथा नकदी फसलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल बढ़ने के कारण हरी खाद के प्रयोग में निश्चित ही कमी आयी है। लेकिन बढ़ते ऊर्जा संकट उर्वरकों के मूल्यों में वृद्वि तथा गोबर की खाद जैसे, अन्य कार्बनिक स्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व बढ़ गया है।
ढैंचा एक दलहनी फसल है। यह सभी प्रकार की जलवायु तथा मृदा दशाओं में सफलतापूर्वक उग सकती है। जलमग्न दशाओं में भी यह 1.5 मी0 से 1.8 मी0 की ऊंचाई कम समय में पा लेती है। यह फसल एक सप्ताह तक 60 सेमी0 तक पानी भरा रहना सहन कर लेती है। इससे क्षारीय तथा लवणीय भूमियों में भी उगाया जा सकता है। हरी खाद के लिए 60 किग्रा0 बीज प्रति हे0 आवश्यकता होती है तथा 42-45 दिन में पलटायी के योग्य हो जाती है। इसकी हरी खाद के रूप में खेती करने से 85-105 किलोग्राम नाइट्रोजन मृदा को प्राप्त होती है। ढैंचा के पलटायी के बाद धान की रोपाई तुरन्त करने से उपज अधिक प्राप्त होती है।
जनपद के सभी राजकीय कृषि बीज भण्डारों पर कुल 214 कु0 ढैंचा बीज अनुदान पर उपलब्ध कराया गया है। जिस पर 50% अनुदान देय होगा। ढैंचा बीज का विक्रय मूल्य रू0 54.65 प्रति किलोग्राम है। 50% अनुदान की धनराशि upagriculture.com पंजीकृत कृषक के बैंक खाते में डी.बी.टी. के माध्यम से जायेगी।
विकास खण्डवार उपलब्धता निम्न है।
क्रमांक विकास खण्ड का नाम मात्रा कु0 में
1 अकबरपुर 28.40
2 मलासा 17.20
3 अमरौधा 28.40
4 राजपुर 17.20
5 डेरापुर 17.20
6 संदलपुर 20.40
7 झींझक 22.40
8 रसूलाबाद 28.40
9 मैथा 17.20
10 सरवनखेडा 17.20
योग- 214.00
