
रिपोर्ट- इशिका सिंह
बीते दिनों ओडिसा के बालासोर में हुए रेल हादसे ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया है। हज़ारों लोगों की ज़िन्दगी एक पल में पलट गई। किसी के सर से माँ का साया उठ गया, तो कही एक बेसाहारा बाप शवों के बीच अपने बेटे को ढूंढ़ता हुआ दिखा। ऐसे में सवाल यह है की कब तक आम आदमी प्रशासनिक गलतियों का भुगतान भोगता रहेगा, क्या आम आदमी के जीवन का कोई मोल नहीं है ?
(फाइल फोटो)
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कवच जैसे सिक्योरिटी सिस्टम को प्रमोट करते दिखे। लेकिन क्या वाक़ई में यह सिस्टम इस्तेमाल किया जा रहा है या यह भी मात्र सरकार का एक जुमला ही है ?
कवच एक ऑटोमेटिक रेल प्रोटेक्शन की टेक्नोलॉजी है। इसमें ये होता है कि मान लीजिए दो ट्रेन गलती से एक ही ट्रैक पर आ गई तो उसके पास आने से पहले कवच ब्रेक ट्रेन को रोक देगी, जिससे एक्सीडेंट होने से बच जाएगा।’
ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है की अगर ११ साल पहले इस सिस्टम का ट्रायल हो चूका था तो फिर रेलवे ने इसे लागू करने में आखिर इतनी देर क्यों कर दी। क्या यह भी २०२४ के चुनाव के लिए एक प्रोपेगंडा है ?
(फाइल फोटो)
मई 2022 में अश्विनी वैष्णव ने रेल हादसे रोकने के लिए इंजनों को सुरक्षा कवच पहनाने की घोषणा की थी। एक साल बाद भी 19 रेलवे जोन में से सिर्फ सिकंदराबाद में ही कवच लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। देश में कुल 13,215 इलेक्ट्रिक इंजन हैं। इनमें सिर्फ 65 लोको इंजनों को ही कवच से लैस किया गया है। 2022-23 वित्तीय वर्ष में भारतीय रेलवे ने देशभर में कम-से-कम 5000 किलोमीटर रूट पर कवच लगाने का लक्ष्य रखा है।
(फाइल फोटो)
कई रेल कर्मचारियों का यह भी कहना है की सरकार उनसे ओवरटाइम ड्यूटी करा रही है और बहुत सी सीनियर पोस्ट्स खाली पड़ी हैं , ऐसे में रेलवे चाहे तो वेकन्सी निकाल कर लोगों को रोज़गार दे सकती है।लेकिन सरकार ऐसा क्यों नहीं करना चाहती और यात्रियों की जान से आखिर क्यों खिलवाड़ हो रहा है इसका जवाब तो सरकार ही दे पाएगी। आम जनता जो न जाने कितने सपने लिए करोड़ो की तादात में रोज़ भारतीय रेल से सफर करती है , अपनी जान की सुरक्षा रेलवे को सौंपती है ,वही प्रशासन ऐसी लापरवाही करता है। अगर इन चीज़ों पर पहले ध्यान दिया गया होता तो शायद आज २५०+ से ज़्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती थी।