
मनीष गुप्ता, एडिटर इन चीफ़, समाचार भारती
बात 90 के दशक की है
नवयुग कन्या विद्यालय चारबाग स्थित एक सरकारी स्कूल की सीधी-साधी , साधारण दिखने वाली , डरी – सहमी मिडिल क्लास फैमिली को बिलॉन्ग करने वाली लड़की ।
आंखों में एवरेज ख्वाब , दिल में शाहरुख खान मेहनती बाजू , दादी – बाबा , स्टेडियम साइकिल , स्कूल , भाई – बहन , मम्मी -पापा के इर्द-गिर्द घूमती ज़िंदगी , फैमिली वैल्यूज , घर का खाना और आपस में सब भाई बहनों का खेलना , टॉमी मेरा डॉगी दोपहर खाने की दाल उसका मुंह खोलकर उसे पिला देना और फिर भी मेरे प्रति उसकी वफादारी और मोहब्बत कम ना होना बस यही थी अपनी छोटी सी जिंदगी कोई बड़े ख्वाब नहीं थे , कुछ जीवन में बड़ा नहीं करना था।
कुछ सनक और कुछ नशे करने की लत बचपन से थी।
सनक – हर उसे चीज को हासिल करना जो आसानी से हाथ ना आए या असंभव प्रतीत हो।
एग्जांपल – मुझे वहीं नाइंथ का सैक्सन चाहिए था जिसकी क्लास टीचर पूरे स्कूल में सबसे खड़ूस और डेंजरस मानी जाती थी।
आशा सिंह मैम जिस लॉबी से गुजरती थी पूरी लॉबी में सन्नाटा पसर जाता था हमें उनको अपना बनाना था ????????
नशा – मेहनत का नशा , सेवा का नशा , काम का नशा , परफेक्शन का नशा यह वह नशे हैं जो आज भी हमारी नसों में दौड़ रहे हैं।
बात 9th स्टैंडर्ड की है साइंस साइड की एक लड़की पर रेप अटेम्प्ट हुआ उसी के लैब असिस्टेंट ने नंबर बढ़ाने की आड़ में उसके साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की उस समय मैं आर्ट की सेक्रेटरी थी।
और अपुन का स्कूल में बहुत चलता था।
हमारी बेस्ट फ्रेंड्स साइंस साइड की सेक्रेटरी थी। हमारी छोटी बहन नीतू जो कि अब इस दुनिया में नहीं रही वह कॉमर्स की सेक्रेटरी थी।
मामला हमारे संज्ञान में आया , यहां पर एक बात से आपको अवगत कराना चाहती हूं जो आज हमारे रगों में लीडरशिप दौड़ रही है क्रांतिकारी भावना दौड़ रही है गलत को गलत कहने का जज्बा दौड़ रहा है यह हमारी परवरिश का नतीजा है , पिताजी के सिखाए गए उन गुणों में से एक ।
उस बच्ची ने बहुत विश्वास के साथ हमें अपनी सारी बातें बताई और मदद की उम्मीद भी रखी एक नाइंथ स्टैंडर्ड की छोटी लड़की के सामने। सुनते ही खून खौल उठा, रक्त का संचार बहुत तेज हो गया, दिमाग की नसें फटने लगी , कौन सी बात आपके दिमाग को हिला देगी क्या अंदाजा था ? उस समय तो मां-बाप की संरक्षण में बच्चे सिर्फ पढ़ना खेलना और जिंदगी को जीना जानते थे, जिस विश्वास के साथ उस लड़की ने न्याय की उम्मीद के साथ मुझे वह बात बताई मेरे ऊपर अचानक से पूरी दुनिया का सबसे बड़ी जिम्मेदारी आ गई , अचानक से कंधों पर बोझ महसूस होने लगा अब उसे बोझ से निजात तो पानी ही थी । जिस लड़की को यह नहीं पता था कि करना क्या है लेकिन बात विश्वास की थी यहां पर
फिर क्या था , बात दोस्तों तक पहुंचाई हमने हमारे दोस्तों से माउथ पब्लिक सिटी करते-करते पूरे स्कूल में बात को जानबूझकर फैलाई गई ।
क्योंकि एकता में ही शक्ति है यह पाठ इसी स्कूल द्वारा सिखाया गया था आज अमल करने की बारी थी ।
देखते देखते यह बात आग की तरह पूरे स्कूल में फैला दी गई और यहां दूसरी बात बताई गई थी अगर हम लड़कियां गर्ल्स स्कूल में भी सेफ नहीं है तो फिर हम कहां जाएं?
एक बड़े सवाल के साथ हर लड़की के जह़न में यह बात बैठाई गई कि अब हमें खुद की अपनी मदद के लिए कोई बड़ा कदम उठाना होगा। क्योंकि जब तक हम लोगों ने टीचर्स से यह बात बताई तो स्कूल प्रशासन और टीचर्स इन बातों को कहीं गाड़ने में , छुपाने में , कहानी को बदलने में लगा हुआ था कुछ मुट्ठी भर टीचर्स ही हमारे साथ खड़ी होने के फेवर में थी।
वह भी खुल के सामने नहीं आ सकती थी सरकारी नौकरी में सरकारी जंजीरों ने हाथ बांध रखे थे तो वह भी सिर्फ पीछे से सपोर्ट कर रही थी हम लोगों को।
एक साधारण सुबह…
6:45 पर स्कूल का विशाल काय गेट खुलता है
हर रोज की तरह बच्चों का स्कूल के अंदर प्रवेश होने लगता है जैसे-जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ रही होती है बच्चों का प्रवेश झुंड में बदल जाता है। होमवर्क हो जाने की खुशी से लेकर होमवर्क ना होने का डर, आज टिफिन में मम्मी ने मेरा फेवरेट चावल दिया है की खुशी से लेकर टिफिन में सिर्फ ब्रेड बटर है की पीड़ा , नए चमकदार जूते से लेकर धूल में लिपटे कोने से पांव का अंगूठा झाकते हुए जूते तक , स्त्री किए हुए कृच वाली स्कर्ट और ट्यूनिक से लेकर पुरानी अंदर की समीज झांकते हुए स्कूल यूनिफॉर्म तक , खुशी से उछलती जिंदगी वाली लड़कियों से लेकर पीरियड्स के बोझ में दबी लड़की तक , टीचर की फेवरेट लड़की से लास्ट बेंच पर बैठी फिसड्डी लड़की तक सिर्फ एक बात का़मन थी वह थी कि समय से अपने असेंबली हॉल में पहुंच जाने की।
असेंबली होती है…
साइंस की आर्ट की कॉमर्स की की लड़कियों में पकड़ होने की वजह से आज की सुबह असल में मिला फायदा ।
आज की सुबह कितनी कातिलाना भयावर होने वाली थी जिसकी प्लानिंग पिछले कई दिनों से लड़कियों में चल रही थी।
तय था कि असेंबली के तुरंत बाद कोई भी लड़की अपने क्लास में नहीं जाएगी सब वहीं पर एक जगह एकत्रित हो जाएगी तीनों असेंबली अलग-अलग लगाती थी हम सभी को एक जगह एकत्रित हो जाना था विश्वास जानिए मैंने कोई नारा तैयार नहीं किया था।
लड़कियां एकत्रित हो जाएगी इस बात का भी अंदाजा नहीं था लेकिन जो सोचा था वह तो हो ही रहा था जो नहीं सोचा था वह उससे ज्यादा हो रहा था ।
पूरे स्कूल की सभी लड़कियां एक जगह एकत्रित हो गई थी लड़कियों में बस जोश भरने की देरी थी किसी ने एक मेज लाकर वहां रखी और न जाने कैसे हमारे कदम उसे मेज के ऊपर खुद ब खुद चढ़ गए और हमने नारेबाजी शुरू कर दी हमारा साथ दिया हमारे दोस्तों ने जो कि तीनों अलग-अलग स्टीम के थे ।
रघुवीर यादव मुर्दाबाद
मुर्दाबाद मुर्दाबाद !!
हमें न्याय चाहिए
न्याय चाहिए न्याय चाहिए !!
रघुवीर यादव को सस्पेंड
सस्पेंड करो सस्पेंड करो !!
एक बार फिर से शरीर में रक्त का संचार बहुत बढ़ गया दिमाग की नसे फटने लगी खुद ब खुद ऐसी चीज घटित होने लगी जिसे हमने कोई विचार नहीं किया था टीचर्स ने जब हमें प्रिंसिपल ने स्कूल प्रशासन ने रोकने की कोशिश की तो न जाने वह सीधी-साधी लड़की में कहां से कौन सी शक्ति आ गई न्याय दिलाने के लिए कि उसने स्कूल की लैब को फोड़ दिया अपने सभी दोस्तों और स्कूल की सभी लड़कियों के साथ मिलकर फर्नीचर तोड़ दिए गए हमारे राह का जो भी काटा बन रहा था।
बात न जाने कैसे संगठनों तक पहुंच गई गेट के बाहर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सैकड़ो बच्चे, आयशा के सैकड़ो बच्चे और एक कोई तीसरा संगठन था जिसका नाम मुझे नहीं याद आ रहा है उन लोगों ने हमसे बात करने की कोशिश की और स्कूल का मेन गेट जुगत से खुलवाकर जबरदस्ती स्कूल में प्रवेश कर गए और बात बहुत बढ़ गई पुलिस की गाड़ियां आ गई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संजय भैया की टीम को जेल हो गई ।
यह सब कुछ अभी तक बिना प्लानिंग के चल रहा था मेरे जीवन की एक बहुत बड़ी विडंबना है प्लानिंग आज तक बहुत कभी नहीं कर पाए किसी चीज की जो अचानक किया बस उसी में सफल रहे।
दूसरे दिन के सभी अखबार सिर्फ इस घटना से पटे पड़े थे।
स्कूल बंद कर दिया गया था,
जान से मार देने की धमकी और रेप की धमकी लगातार मिलने लगी थी।
हमने और हमारी बहन ने अकेले स्कूल आना जाना छोड़ दिया था।
हमारा घर अखबार का दफ्तर बन गया था दिनभर इंटरव्यू , मामले की सही जानकारी ,
रघुवीर यादव अंडरग्राउंड हो गया था।
परंतु हमने अपने प्रयास बीच में नहीं छोड़े थे लगातार हम लोगों के साथ रघुवीर यादव के घर जा रहे थे आसपास उसके चाल चलन और व्यवहार की जानकारी इकट्ठा कर रहे थे यह सारा काम पुलिस का था लेकिन अंजाम हम लोग दे रहे थे , अब तक हमारे सभी दोस्तों पर जान से मार देने की धमकी मिलने पर लगभग हम लोग अकेले हो चुके थे परंतु हौसले बुलंद इसलिए थे क्योंकि पिताजी ने सिखाया था कि सच का साथ कभी मत छोड़ना सच के लिए सदैव लड़ना और यहां पर तो बात किसी लड़की के विश्वास की थी डटे रहे हम…
नए-नए रिपोर्टर बन नवलकांत सिन्हा भैया और सुधीर मिश्रा भैया और हमारे घर में स्कूल प्रशासन द्वारा 40-40000 भिजवाया गया खबर को बंद कर देने के लिए। माना जाता है कि यदि आप शुरू से ही सच्चाई और ईमानदारी का दामन ना छोड़े तो निश्चित रूप से आप एक सफल इंसान बनेंगे । हम तीनों ने स्कूल प्रशासन द्वारा भेजी गई रकम नहीं ली और लगातार यह घटना सुर्खियों में महीना बनी रही लंबे समय तक स्कूल बंद रहा ।
उसे लड़की को स्कूल छोड़कर दूसरे शहर शिफ्ट हो जाना पड़ा नवलकांत भैया के साथ हम लोग उस लड़की के घर भी गए थे ।
उनके परिवार से मिले थे धीरे-धीरे साइस साइड की लड़कियों ने हमारा साथ छोड़ दिया क्योंकि उनको अलग-अलग तरीके से डराया जा रहा था कि तुम सभी को फेल कर दिया जाएगा।
प्रैक्टिकल में जीरो दिया जाएगा। ।
तो लगभग साइंस साइड की लड़कियों के लिए ही हम लोग यह लड़ाई लड़ रहे थे और उन सभी लड़कियों ने हमारा साथ छोड़ दिया था ।
अंततः
रघुवीर यादव को सस्पेंड किया गया।
यह कहानी बहुत लंबी है हमें बहुत शॉर्ट में लिखना था ।
अब बात करते हैं पेटी भर ख़त….
इस घटना से पहले भी अपना जलवा था स्कूल में लेकिन इस घटना के बाद तो हम लोग रियल हीरो हो गए थे क्लास के बाहर सैकड़ो लड़कियां हर रोज आइसक्रीम लेकर चॉकलेट लेकर फूल लेकर खड़ी रहती थी वैलेंटाइन डे हो या हमारा जन्मदिन या एक आम स्कूल का दिन हम पूरा एक बस्ता भर के गिफ्ट डेली घर ले जाते थे। स्पेशल ऑकेजंस में हमें अलग से एक गाड़ी करके उसमें गिफ्ट चॉकलेट्स गुलदस्ते आदि ले जाना पड़ता था। स्कूल की दीवारें आई लव यू वर्षा दीदी आई लव यू नीतू दीदी के नाम से पटी रहती थी ।
आए दिन हमारी प्रिंसिपल को स्कूल की दीवारों को जी गेहुए रंग से पुतवानी पड़ती थी और दूसरे दिन फिर से दीवारों पर मोहब्बत भरी दस्त लिख दी जाती थी।
एक घटना याद है मुझे जब हमारे हाथ में कुछ फूल थे और हमारी प्रिंसिपल ने रोक कर कहा था कि अगर तुम्हारे हाथ में कल से फूल दिखे तो तुम्हारा स्कूल से नाम काट देंगे तुम्हारा स्कूल आना बंद करवा देंगे और यह बात से में बहुत आहत हुई और मैंने अपने स्कूल की सभी लड़कियों को बताया कि कल से फूल मत लाना वरना प्रिंसिपल मुझे स्कूल से निकाल देंगी।
दूसरे दिन हर वह लड़की जो एक फूल देती थी हर लड़की गुलदस्ता लेकर आई थी मुझे आज भी याद है कि मैंने दो ऑटो की थी उन गुलदस्ता के लिए और उन्हें तब घर ला पाए थे । लड़कियों का कहना था कि अकेले आपका ही नाम नहीं कटेगा हम देते हैं हमारा नाम काटे पूरा स्कूल एक साथ खाली हो जाएगा । और प्रिंसिपल ने इतने सारे गुलदस्ते के साथ मुझे देखा था और बेचारी कुछ कह नहीं पाई थी मैंने भी एक मीठी मुस्कान दी थी . ..
नोट: उन्हें नफरत थी मेरी उस मुस्कान से ????????
नवयुग की हर लड़की मुझे खत लिखा करती थी हर रोज मैं पढ़ती थी ।
हर लड़की वर्षा दीदी नीतू दीदी बनना चाहती थी।
अपने दिल की बातें उसमें लिखकर हर लड़की उम्मीद रखती , किसी दिन शायद दीदी कभी इन ख़तों का जवाब देंगी हम ख़तों का जवाब भले ही ना दे पाए हो लेकिन आज जो मेरे पास पेटी भर खत… है
वही मेरी पूंजी है,
आज तक जीवन में भले कुछ कमाया हो ना कमाया हो लेकिन जो सबकी मोहब्बत , जो सबका विश्वास कमाया है वही हमारी शक्ति है
यही हमारा जीवन है…
यह थी एक सच्ची पेटी भर ख़त…
की कहानी …