
जातीय जनगणना के विरोध में नहीं,लेकिन पूरे भारत में है सिर्फ चार वर्ण – राघवेंद्र सिंह (राजू )वरिष्ठ राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा
खास रिपोर्ट
देश मे सर्वाधिक चर्चित सामाजिक क्षत्रप नेता राघवेन्द्र सिह राजू ने समाचार भारतीय से इंटरव्यू मे कहा कि हम जातिगत जनगणना के कतई विरोधाभास मे नही पर ये चार वर्ण थे क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य शुद्र
देश मे हमारी बाहुल्यता की 131 लोकसभा मे निर्णयात्मक वोट बैक है 1225 विधानसभा इन सीटो का परसीमन कब होगा.
जातियों उपजातियों मे उपभ्रंश हटाकर जातीय गणना हुआ तो
हमारी संख्या 13% के आसपास होगी .
देश मे तीन पदयात्रा कर चुके राघवेन्द्र सिह राजू ने कई पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन किया चेतक धर्म सबसे समाज मे चर्चित हुई पर वित्तीय कारणो से बंद करना पडा .राघवेन्द्र सिह राजू ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद कुंवर हरिवंश सिह ने समाज को सर्वोपरि मानकर बताया मंत्री सांसद विधायक से
बडा हमारा समाज है आज देश मे एक मात्र क्षत्रियों का संगठन
सभी वर्गों मे सामंजस्य बनाकर सुर्खियों मे है राघवेन्द्र सिह मानते
दुनिया में एकमात्र देश भारत या हिंदुस्तान है, जिसे आठवीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक उत्तर- पश्चिम से इस्लाम समर्थक आक्रांताओं का आक्रमण झेलना पड़ा, उस आक्रमण का मुकाबला कर इस देश को “इस्लामी राष्ट्र” बनाने के सपने को” केवल और केवल राजपूतों” ने अपनी वीरता, शोर्यता और अपने बलिदान एवं राष्ट्रवादी सोच और देशभक्ति पूर्ण आचरण के साथ ही “सनातन एवं हिंदू समाज” की रक्षा का भार दायित्व के रूप में संभालते हुए अपना” सर्वस्व न्योछावर” कर दिया देश को मुगलों और बाद में अंग्रेजों, की गुलामी से आजाद होने के बाद इस देश को एक राष्ट्र बनाने के लिए” राजपूत” की सेकंडो रियासतों और बाद में हजारों “जागीरो और ठिकानों” के वारिसो नै अपने अधिकार छोड़कर देश को” सर्व संपन्न” बनाने का रास्ता साफ किया, “1857 से 1947” अर्थात 90 वर्ष तक, “जयपुर’ जोधपुर, उदयपुर एवं ग्वालियर” रियासतों की क्राइम फाइलों का अध्ययन मे पाया कि 90 वर्ष में एक भी रियासत में “बच्चियों, यूवतियो या महिलाओं” से “बलात्कार या दुष्कर्म और गैंगरेप” तो दूर छेड़छाड़ की एक “एफ आई आर” तक दर्ज नहीं हुई है, और आज क्या हो रहा है सारा देश जानता है? क्या यह महिला उत्पीड़न इस देश को “लोकतंत्र और संविधान” की देन है?
प्रश्न तो है देश का भविष्य क्या होगा?
देश की आजादी के बाद सत्ता लोभी ताकते यह समझती थी कि सत्ता में बने रहना है तो “राजपूत शक्ति” एवं अन्य “राष्ट्रवादी एवं देशभक्ति” से परिपूर्ण जाति को चाहे कमजोर क्यों न करना पड़े, उनका इतिहास बिगाड़ कर उन्हें सत्ता से विमूख एवं समाज में कमजोर करना जरूरी होगा, चाहे देश की अस्मिता ही खतरे में क्यों न पड़ जाए ?
क्योंकि सदियों से इस देश में सत्ता और स्वाथॅ के चलते देश की अस्मिता से खिलवाड़ के उदाहरण इतिहास में ही नहीं आज भी देखने
को मिल रहे हैं
हिंदू या सनातनी समाज के आचरण से जातिवाद, स्वाथॅवाद, अवसरवादीता , मतलब परस्ती स्पष्ट दिखाई दे रही है, फिर वह किसी जाति या वणॅ का हो, जो “शक्ति, जो सत्ता “, सेवा का साधन होती थी आज मेवा खाने की दुकान बन गई है, गुलजारीलाल जी नंदा और लाल बहादुर शास्त्री जी, का समर्पण, सादगी की बजाय 75 बरस बाद संविधान एवं लोकतंत्र में ,चाचा का बाटो और शासन करो, झूठ बोलो और इस देश की” भोली- भाली “जनता को गुमराह करो एवं सत्ता ओर शासन को, देश एवं जनता की सेवा करने की बजाय, मेवा खाने की होड, सभी दलों में बनी है.आखिर बोलेगा कौन मुंह खोलेगा कौन
हो यह भी सकता कि मैं गलत हूं लेकिन मैं सोचता हूं कि राजनीतिक पार्टिया सत्ता तो चाहती है लेकिन” राष्ट्र वादियो” एवं देशभक्त समाज का साथ नहीं देना चाहती हे, चाहे देश की अस्मिता और हिंदू धर्म एवं सनातनी का अस्तित्व ही पतन की ओर क्यों न जाए?
राजपूत राजनीति के ये उदाहरण पर्याप्त होंगे
नंबर वन 1952 में राजस्थान विधानसभा में 180 में से 72 राजपूत विधायक बने थे
नंबर दो 1980 में संजय गांधी के चलते उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 139 विधायक राजपूत बने थे
नंबर 3, 2012 में मा नेता मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी 52 राजपूत को टिकट दिए थे और 45 राजपूत जीते थे सपा तो राजपूतो के बल पर ही सत्ता में आया था.2013 मे विधानसभा जब कुंवर हरिवंश सिह अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने घेरा डालो डेरा डालो तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सभी मांगो को पूरा किया था 2014 लोकसभा मे भी भाजपा को 99% वोट क्षत्रियों का मिला
पर धीरे धीरे आज अब
2024 में राजपूतों के स्वाभिमान और उनके जमीर को कष्ट होने का परिणाम सब देख रहे हैं, लेकिन कोई “स्वीकार करने की हिम्मत” दिखाकर देश हित में नहीं सोच रहा है ,सिर्फ अपनी सोची जा रही है ,देश और कानून व्यवस्था चाहै दाव पर ही क्यों न लग जाए?
कहावत है ” मुर्गा जब जान से जाता है, तब खाने वाले को मजा आता है” “मुर्गा मरेगा तभी तो पकेगा” अर्थात कुछ पाने के लिए कुछ गवाना पड़ता है
राजनीति में सक्रिय कुछ” राजपूत” पाना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन करना कुछ नहीं चाहते हैं, अपने स्वार्थ के चलते पूर्वजों के संस्कार, दबंगता और आक्रामकता को भूल गए लगते हैं?
” कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंढे वन माही” ऐसे घट -घट राम है, दुनिया देखे नाहीं” इस दोहे के अनुसार राजपूत अपने आप को पहचान नहीं पा रहे हैं, सब कुछ उनके अंदर है, लेकिन वह बाहर ढूंढने में लगे “है अपने आप को पहचानो, अपनी पहचान स्वयं बनाओ, कब तक पूर्वजों की पहचान से स्वयं को बनाए रखेंगे, समाज को एवं देश को महान बनाने के लिए स्वयं को पहचाने और आगे बढ़े,
समाचार भारतीय मनीष गुप्ता