
रिपोर्ट-इशिका सिंह
यह बात सच है कि बाहर गर्मी बहुत है धूप गर्म हवाओं में सेवा देते हुए तो पता नहीं चलता है परंतु घर आते आते ऐसा लगता है कि शरीर में जान नहीं रह गई है।
* 44 डिग्री की धूप
* लू के थपेड़े
* गर्म हवाएं
* न सिर्फ आपको झुलसा देती हैं आपको अंदर से तोड़ देती हैं
* इस बात का एहसास उस दिन हुआ जिस दिन मैंने भरी दुपहरिया सड़कों पर रिक्शा चालक, फल विक्रेता , सब्जी विक्रेता , कूड़ा बीनने वाले , जूस के ठेले , मोची या नाई जैसे अन्य लोगों को अपना और अपने घर का पेट पालने के लिए मेहनत करते देखा झुलसते देखा ।
यूं तो हम और आप ए सी की गाड़ियों में बैठकर दिन में कई बार ऐसे लोगों को सड़क के किनारे राह चलते हाईवे पर तपते हुए , आशा भरी निगाह से तकते हुए , आंखों में बिक्री की उम्मीद लिए देखा ही रहते हैं। परंतु यदि आपको इन लम्हों को जीने का मौका मिले तो आपकी रूह फनाह हो जाएगी और ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ।
(फाइल फोटो)
यू तो दिनभर कोई ना कोई काम लगा ही रहता है कभी शव वाहन का तो कभी किसी लावारिस शव का या किसी बुजुर्ग महिला को वृद्ध आश्रम ले जाना या किसी लावारिस को अस्पताल में एडमिट कराना परंतु मन में आया कि प्रतिदिन कमा कर खाने वाले लोगों का कुछ काम हम आ सके तो ऐसा क्या किया जाए!
बहुत विचारने पर निर्णय लिया कि जो यह रिक्शा चालक यह जो अन्य लोग होते हैं इनके सर पर सीधी धूप पड़ रही होती है यदि उससे कोई बचाव हो जाए तो बेहतर होगा इस विचारधारा के साथ पहुंच गए अहियागंज की थोक बाजार में और ट्रायल के रूप में ५0 अंगौछे खरीदे और 3 एरिया को कवर किया।
लगभग दोपहर के 1:00 से 3:00 तक ऐसे लोगों को अंगौछे का वितरण किया गया ऊपर जिन का विवरण दिया गया है।
बांटते बांटते जब मेरा भी सर फटने लगा तो मैंने भी उनमें से एक अंगोछा अपने सर पर बांध लिया।
और विश्वास जानिए मुझे बड़ी राहत मिली , अंगौछे की वजह से ही 3 घंटे धूप में रहने के बाद भी शायद मेरी तबीयत नहीं कर गड़बड़ हुई। 1 दिन धूप में काम करने मैं मेरे पसीने छूट गए जबकि इलेक्ट्रॉल की एक बोतल मेरे साथ थी। जरा सोचिए इन लोगों को हर रोज अपने और अपने परिवार का पेट पालने के लिए इसी धूप को झेलना होता है।
कृपा रही तो पूरे गर्मी भर यह अंगौछे लखनऊ के हर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाए जाएंगे।
यह कहना गलत नहीं होगा कि अंगौछे पाकर लोगों के चेहरे पर खुशी थी यह कोई बड़ा काम नहीं है मोटी रकम नहीं लगी है परंतु एक राहत तो जरूर मिली है उन्हें और हमारे दिल को तसल्ली। और हम इसी तसल्ली के लिए ही जीते हैं