इसरो ने रचा इतिहास, 21 मिनट में अंतरिक्ष में 650 किमी ऊंचाई पर पहुंच जानेगा ब्लैक होल के राज।

By | January 1, 2024

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सोमवार को अपने पहले एक्सपोसेट मिशन को लॉन्च किया।  यह मिशन एक्स-रे स्रोतों का पता लगाने और ब्लैक होल की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में मदद करेगा। एक्सपोसेट एक एक्स-रे पोलारिमीटर सेटेलाइट है। पोलारिमेट्री एक तकनीक है जो प्रकाश के ध्रुवीकरण को मापती है। एक्स-रे स्रोतों के पोलारिमेट्रिक अध्ययन से उनके मूल और संरचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है। एक्सपोसेट का वजन करीब 1.5 टन है और यह 2.5 मीटर लंबा और 1.5 मीटर चौड़ा है। इसमें दो एक्स-रे पोलारिमीटर हैं जो अलग-अलग ऊर्जा बैंड में एक्स-रे का पता लगा सकते हैं।

एक्सपोसेट को इसरो के पीएसएलवी-सी58 रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया। लॉन्च का समय सुबह 9:10 बजे निर्धारित था ।एक्सपोसेट मिशन करीब पांच साल तक चलेगा। इस दौरान यह ब्रह्मांड के कई एक्स-रे स्रोतों का अध्ययन करेगा। भारत साल की शुरुआत खगोल विज्ञान के सबसे बड़े रहस्यों में से एक ब्लैक होल के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उपग्रह भेज कर करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के इस पहले एक्स-रे पोलरीमीटर उपग्रह यानी ‘एक्सपोसैट’ को रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) सी 58 महज 21 मिनट में अंतरिक्ष में 650 किमी ऊंचाई पर ले जाएगा। इस रॉकेट का यह 60वां मिशन होगा। इस मिशन में एक्सपोसैट के साथ साथ 10 अन्य उपग्रह भी पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित होंगे।

मिशन के लिए रविवार सुबह 8:10 बजे से उलटी गिनती शुरू कर दी गई। प्रक्षेपण सुबह 09:10 बजे चेन्नई से 135 किमी दूर मौजूद श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष-अड्डे के प्रथम लॉन्च पैड से हुआ। इसरो ने बताया कि एक्सपोसैट 5 साल काम करने के लिए बना है, यानी साल 2028 तक इसे काम में लिया जाएगा। प्रक्षेपण के लिए 44.4 मीटर ऊंचा पीएसएलवी-डीएल प्रारूप का रॉकेट बनाया गया। इसका लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान 260 टन हैं। यह सबसे पहले पृथ्वी से 650 किमी ऊंचाई पर एक्सपोसैट को स्थापित करेगा। यह करने के लिए इसे लिफ्ट-ऑफ के बाद 21 मिनट लगेंगे। यहां काम खत्म नहीं होगा।

उपग्रहों को स्थापित करने के बाद वैज्ञानिक पीएसएलवी-सी 58 को पृथ्वी की ओर 350 किमी की ऊंचाई तक लाएंगे। इसके लिए रॉकेट में शामिल किए जा रहे चौथे चरण का उपयोग होगा। यहां पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल – 3 (पोयम 3) परीक्षण अंजाम दिया जाएगा। यह बता दें कि अप्रैल 2023 में पीएसएलवी सी 55 रॉकेट के साथ भी इसरो ने पोयम परीक्षण किया था। एक्सपोसैट में दो उपकरण लगाए गए हैं। पहला पोलरीमीटर इंस्ट्रूमेंट इन एक्सरे यानी पॉलिक्स। इसे रमन शोध संस्थान ने बनाया है। वहीं एक्सरे स्पेक्ट्रोस्कोपी एंड टाइमिंग यानी एक्सपेक्ट दूसरा उपकरण है, जिसे यूआर राव उपग्रह केंद्र बेंगलूरू ने बनाया है।

एक्सपोसेट मिशन के महत्व निम्नलिखित हैं:

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि: एक्सपोसेट मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह भारत का पहला एक्स-रे पोलारिमीटर सेटेलाइट है। इस मिशन के सफल होने से भारत को एक्स-रे खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी शक्तियों में से एक बनाने में मदद मिलेगी।

  • ब्रह्ांड के बारे में हमारी समझ में महत्वपूर्ण वृद्धि: एक्सपोसेट मिशन से ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। यह मिशन ब्रह्मांड के कई एक्स-रे स्रोतों का अध्ययन करेगा, जिनमें ब्लैक होल, एक्स-रे द्वैती, एक्स-रे गैलेक्सी, और एक्स-रे सुपरनोवा शामिल हैं। इन स्रोतों के अध्ययन से हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास, और संरचना के बारे में अधिक जान पाएंगे।

  • ब्लैक होल की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन: एक्सपोसेट मिशन ब्लैक होल की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करने में भी मदद करेगा। ब्लैक होल ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमय पिंडों में से एक हैं। एक्सपोसेट मिशन के माध्यम से हम ब्लैक होल के ध्रुवीकरण का अध्ययन कर सकते हैं, जिससे हमें उनके मूल और संरचना के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हो सकती है।

एक्सपोसेट मिशन के मुख्य लक्ष्य

एक्सपोसेट मिशन के निम्नलिखित मुख्य लक्ष्य हैं:

  • एक्स-रे स्रोतों का पता लगाना
  • ब्लैक होल की रहस्यमयी दुनिया का अध्ययन करना
  • एक्स-रे स्रोतों के मूल और संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करना

इसरो ने बताया कि इस उपग्रह का लक्ष्य सुदूर अंतरिक्ष से आने वाली गहन एक्स-रे का पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण पता लगाना है। यह किस आकाशीय पिंड से आ रही हैं, यह रहस्य इन किरणों के बारे में काफी जानकारी देते हैं। पूरी दुनिया में एक्स-रे ध्रुवीकरण को जानने का महत्व बढ़ा है। यह पिंड या संरचनाएं ब्लैक होल, न्यूट्रॉन तारे (तारे में विस्फोट के बाद उसके बचे अत्यधिक द्रव्यमान वाले हिस्से), आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद नाभिक आदि को समझने में मदद करता है। इससे आकाशीय पिंडों के आकार और विकिरण बनाने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी। एक्सपोसेट मिशन के सफल होने से इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिससे ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।