अपनेपन की बारिशें तो सबको भिगोती हैं …
कभी दूसरों के लिए धूप की तपिश में नहा कर देखा है।।
उजाले के गांव में तो सभी खेलते हैं …
कभी अंधेरों में किसी का दिल टटोलकर देखा है।।
चहलकदमिंया तो सबके दिलों को गुदगुदाती हैं …
कभी परायों के गमों में डूब कर देखा है।।
ये खुशियां जब मेहरबां होती हैं हर जख्म मिटा देती हैं…
कभी औरों के गमों के हाल में खुद को मिटा कर देखा है।।
हां मैंने देखा है उसे…
हर रोज खुद के कटघरे में खड़े होते देखा है मैंने …
न जाने कौन सी आग में जलते देखा है मैंने…
उस मिट्टी सी को रोज भट्टी में तपते देखा हैमैंने…
तब जाकर उसे सोने से खरा होते देखा है मैंने…
हां उसे लोबान के माफिक सुलगते देखा है मैंने।।
स्वरचित पंक्तियां
किसी भी वास्तविक सेवा के लिए संपर्क करें संपर्क सूत्र वर्षा वर्मा 831 819 3805
