बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला: गुजरात सरकार का आदेश रद्द, दोषी फिर से जाएंगे जेल।

By | January 9, 2024

(ब्यूरो रिपोर्ट समाचार भारती)

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए गैंगरेप और हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गुजरात सरकार को दोषियों की रिहाई का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि सजा अपराध रोकने के लिए दी जाती है। गुजरात सरकार को रिहाई का फैसला लेने का अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है, इसलिए इसका पूरा अधिकार वहां की राज्य सरकार को है। क्योंकि जिस राज्य में किसी अपराधी का मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, उसको दोषियों की माफी याचिका पर फैसला लेने का अधिकार है। इस फैसले के बाद अब 11 दोषियों को दोबारा जेल जाना होगा। वे लगभग 15 साल जेल में बिताने के बाद अगस्त 2022 में रिहा हुए थे।

दोषियों की रिहाई के गुजरात सरकार के आदेश को पीड़िता बिलकिस बानो ने कोर्ट में चुनौती दी. इसके अलावा, सुभाषिनी अली, रूपरेखा वर्मा, रेवती लाल, महुआ मोइत्रा समेत कई नेता और सामाजिक कार्यकर्ता रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इन याचिकाओं में कहा गया कि इस तरह के जघन्य अपराध के दोषियों का रिहा होना मानवता के हिसाब से सही नहीं है. यह भी कहा गया है कि रिहाई का फैसला लेते समय पीड़ित बिलकिस का भी पक्ष पूछा जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।

बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। कांग्रेस ने इस फैसले को स्वागत किया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि यह फैसला न्याय की जीत है। उन्होंने कहा कि यह फैसला पीड़ित परिवार के लिए राहत लेकर आया है।

भाजपा ने इस फैसले पर निराशा व्यक्त की है। भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि यह फैसला राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। बिलकिस बानो केस 2002 के गोधरा दंगों के दौरान हुए एक जघन्य अपराध से जुड़ा है। इस मामले में 11 लोगों को गैंगरेप और हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया था। उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही यह दोषी लगभग डेढ़ साल से बाहर हैं, लेकिन उन्हें वापस जेल भेजने का फैसला लेते समय इस बात को महत्व नहीं दिया जा सकता. देश कानून के शासन के आधार पर चलता है. गुजरात सरकार के जिस आदेश के आधार पर यह रिहाई हुई, वह कानूनन गलत था, इसलिए दोषियों को इसका लाभ नहीं मिल सकता. कोर्ट ने सभी दोषियों से कहा है कि वह 2 सप्ताह के भीतर समर्पण कर वापस जेल जाएं। 2022 में गुजरात सरकार ने इन दोषियों की रिहाई का फैसला लिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।